साईकिल से कॉलेज जाना, बड़ा शर्मनाक था
कार वालो से नजरे मिलाना, बड़ा मुश्किल सा थामेरी खामोशी को, वो मेरा घमंड समझते थे
सच कहु तो उनकी, चमकीली अंग्रेजी से डरते थेना सूरत, ना ऊंचे कपडे थे,
जेब से तो हर पल कडके थेइक डर सा था अमीरो का,
इक खौफ सा था, भुखे पेट काउसी खौफ ने तो जीताई, जिंदगी की रेस,
पर अजिबसा ये मुखौटा, अजिब ये अमीरी का भेसअब है बडी सी कार, चमकीले कपडे, और अँग्रेजी बार
पर बड़ा खोखला सा लगता हैं, दिखावे का ये बाजारनवाबी शौक की चाहत, ना तब थी ना अब
पैसों की अमीरी, हमने चाही ही थी कबथोडी जिंदगी की समझ, थोडे रिश्तों में सहज
जिंदगी तुझसे हमने, माँगा हैं इतना महजऐ जिंदगी, बौछार कर मुझ पर,
लुटा मुझ पर, तेरी ग्यान की धार
न गरिबी की लाज,
न अमिरी का मिजाजझूमने दे बारीश में, दिल खोल, बिना छाता
आज कल के 'रेन डान्स' में, कहां मजा आताना साइकिल की शर्म, ना पंक्चर का डर
ये रास्ते के पत्थर, बनाऊँ इनसे अपना शहरउस शहर मे ए जिंदगी, किसी को दौड़ाना मत
दे मौक़ा सभी को, अपने बचपन को लिखने खत"ऐ बचपन, बडे होने का शौक ना कर
पापा की पुरानी साईकिल का मजा, कर्ज के कार में नहीं
किसी की काग़ज़ की कश्ती डुबने से, किसी की हार नहीं"बडे होने का शौक ना कर, ऐ बचपन
जल्दी तुझे बड़ा करणे की, फ़रियाद ना कर ऐ बचपन!24th July, 01:10 AM
#SwapnilThakur
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Nadaniya...Dil Ki
PoetryThe dilemma of a heart whether to love what it has even if it's painful or to run behind what looks rosy until finding it!