इंसान की शकल में, यहां कई कुत्ते हैं
हर पल अपना इमान, बाजारो में बेचते हैं
कभीं अपनों के लिये, कभी सपनों के लिये
जिस गली में रोटी, उसी में चल दिये
तख्त के लिए, रक्त ये पिए
इतना जहर लिये, तो साप भी ना जिए
कभी धरम के लिए, कभी गद्दी के लिए
ना शर्म य़े लिए, उसूल...बस मुखौटे बदलीए
कितने बादशाह आए, मग्रूर हुए
आखिर सभी तो, मिट्टी में ही समाए
फिर भी हैवानियत से, बाज ना आए
आखिर कुत्ते है, पर उसका भी, ना धरम निभाए
बबूल भी नहीं उगता, उनकी जहरीली कबर पर
कह दे अंदर की हैवानियत को, ज़रा सम्भल कर
औरो की सफलता, इसे लगती नाइंसाफी हैं
हो कोई भी मकाम हासिल, सभी को दो गज काफ़ी हैं
फिर भी,
इंसानियत की आड में, इंसानों को काटता हैं
इंसान जाए भाड में, इंसानों को बाटता हैं
कैसी तेरी दुनियादारी, किस महानता का डंका पिटे
बंद कर ये नौटंकी, इक दिन कोई, तेरी भी लंका लुटे
खुदा भी अब सोचता होगा, तुझे बनाकर गलती हुई
अपने बाल नोचता होगा, तुझसे ही पाप की चलती हुई
वक़्त हैं अभी भी, जरा सम्भल जा...
वक़्त हैं अभी भी, जरा सम्भल जा...
जरा शर्म कर, नेक इंसान बन जा
छोड़ कुत्तों की फ़ितरत, एक इंसान बन जा
बन जा इंसानियत देश का वासी, अपनाले इंसानियत धरम को
मानले पुरी दुनियां को मक्का-कासी, छोड़ दे बुरे करम को
Swapnil thakur
26 Feb 2022
#SwapnilThakur
www.swapnilthakur.com
#ManavPuraan
#NadaniyaDilKi
YOU ARE READING
Nadaniya...Dil Ki
PoetryThe dilemma of a heart whether to love what it has even if it's painful or to run behind what looks rosy until finding it!