कश्मकश

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                           कश्मकश

पता नहीं दिल की क्या चाहत है
जो है उससे कुछ खटास है
मृग जल से ही मिटेगी जाने कैसी यह प्यास है
कभी तो वो मिलेगी दिल को जिसकी तलाश है
आंखें बंद करने से पहले मिल जाए
दिल में यही अब आस है

ख्वाहिशें काफी है सीने में
कई तो हासिल भी की है
पर ना जाने क्यों पूरी होते ही,
कमबखत बेगानी लगती है
जो दिल के पास है अनजानी लगती है

यह ना सिर्फ मेरी कहानी है
हर बिखरे दिल की यही जुबानी है
जो पाया उसे चाहा नहीं जाता
जो खोया उसे भुलाया नहीं जाता

कैसी बेचैनी है हर वक्त
सब है पर कहीं कुछ तो कमी है
कुछ पाने की आग कहां कब थमी है
पा भी लूं शायद तुझे तो क्या इस दिल को राहत मिलेगी या तुम्हें पाकर जो खो दूंगा उसकी कमी खलेगी?

-By Swapnil Thakur
Author of Almighty's Embryo

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