ऐ जिंदगी मुझसे कहीं तेरा ऐतबार तो नहीं,
हर एक जख़्म कहीं मेरा तलबग़ार तो नहीं!हमनें किया हैं वह जो भी अच्छा था मगर,
तेरी आँखों में कहीं हम गुनाहगार तो नहीं!हैं यही दुनिया अगर तो यह दुनिया क्यूँ है,
क्या ए चारों ए दीवारें कहीं मज़ार तो नहीं!दर्द़ ए हद़ से गुज़र गया है मगर फ़िर भी,
हर एक उम्मीद को कहीं इंतज़ार तो नहीं!हमनें सुना है नाम तेरा दोस्तों की जुबाँ पे,
तेरे चाहने वालें और कहीं हजार तो नहीं!हर आँसू छुपा के हँसने की क़सम खाई है,
मिलतीं है तु जहाँ पर कहीं दरबार तो नहीं!जान बाकी है बस छत मेरा रहा तो नहीं,
किंमत न चुका सकें कहीं बाज़ार तो नहीं!तेरी चाहत होकर भी मिल नहीं सकतीं हो,
झ़ील के बारे में कोई कहीं ख़बरदार तो नहीं!
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अक़्स
General Fictionwinner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...