# poetry

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कभी मिलने की जरा फ़िर से बात किजीए,
अभी नहीं तो फ़िर कभी मुलाक़ात किजीए!

बहोत हँसीन हो तुम जैसे कोई माहताब़ हो तुम,
धूप में चलतें चलतें ही कभी बरसात किजीए!

जब साथ चलतें हो तो क़ायनात साथ होता है,
कभी आँखों से आँखों में जज़्बात किजीए!

हर एक ग़ज़ल में तुझसे हम यह परदा क्यूँ करें,
कभी तो जमीन पें आकर क़यामत किजीए!

घर से निकलने की इजाज़त तुझको नहीं मगर,
कभी ख़्वाब में जागने की क़रामत किजीए!

तुम ही आना मुझसे पहले उसी ही अंजुमन में,
उठा कर ऊँगलियाँ अपनी द़हशत किजीए!

रहो कहीं भी तुम जहाँ भी तुम चाहते हो मगर,
ग़रीब हैं दिल इस झ़ील पे रियासत किजीए!

अक़्स Where stories live. Discover now