जिंदगी -२

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दफन हैं कितनी कहानियां
मेरे भीतर कोई पूछे तो सही,
दफन हैं कितने राज़ इस शरीर में
कोई सहलाए तो सही,
कैद है कितनी चीख और
आवाजें कोई सुनने आए तो सही।
इतने पर भी दिल नहीं भरता उनका
कुछ कहूं तो जुबान की बुरी,
चरित्र की बुरी, स्वभाव की बुरी!
जो लड़की उठा ले अपने लिए
आवाज इस जहां में सबसे बुरी!
कितने जख्म सहकर बढ़ गये आगे हम
पर जिंदगी अब भी नहीं थकी।
न किसी को सहारा बनाया,
ना किसी का इस्तेमाल किया,
हमने जो कुछ भी किया अकेले किया।
बनाया सिर्फ प्रकृति को अपनी संगिनी–
जो मेरे दु:ख में बरस पड़ती है,
मेरे सुख में हवाओं से खेलती है।

जिस दिन दिल के दो हिस्से कर
सामने रख दिया हमने,
यह दुनिया शर्म से सिर झुका लेगी
यह दुनिया शर्म से सिर झुका लेगी।
— Suchitra Prasad
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