रंगरेज - 1

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रंगरेज

एक शिकायत थी इन हवाओ से,
क्यो बदली अपनी दिशा,
और उड़ा ले गए मेरे दुपट्टे को,

बेचैन होकर जो ढूँढा दुपट्टे को,
हाथ लगी सिर्फ निराशा ही,

एक दिन जो खटखटाया दरवाजा एक रंगरेज ने मेरा,
और लौटाया नया रंग में रंगा दुपट्टे मेरा,
कि एक पल में न जाने कैसा जादू कर डाला,
कि दुपट्टे की लाली भी मेरे गालो पर छा गयी,
कि रंगरेज ने मुझे भी रंग डाला न जाने किस रंग में!
कि अब न रही कोई शिकायत इन हवाओ से,
कि अब शुरू हो चुकी थी कहानी जिसमे रंग भरने थे दिल से।

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पहले - पहले प्यार की नयी - नयी शुरुआत हुई,
मैं नादान पूछ बैठी उनसे -
" रंगते हो किस रंग में ओ रंगरेज मेरे!
कहीं ये कच्चा रंग तो नहीं जो उड़ जाए वक्त की मार से? "
"एक बार रंग कर भूल कौन रहा है प्रिये!
हम तो रंगा करेंगे पक्के रंगों से हर रोज तुम्हें।"
और झुक गयी हमारी नजरे उनका जवाब सुनकर।

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"क्या देखा तुमने गौर से कभी दुपट्टा अपना?
क्या हाथ आया था कुछ नया उसे छूकर? "

"ओ रंगरेज! जब गौर से देखा मैंने दुपट्टा अपना,
तो पाया उसे सितारों से सजा, कि छूकर उसे हाथ आ गए कुछ सितारे भी। "

तब बोले वो वजह उसे सितारों से सजाने की -
" था एक दाग उस दुपट्टे में, जिसे छिपाने के लिए जरुरत पड़ी, सितारों से सजाने की।"

फिर मैं भी ये पूछ बैठी -"क्या दिल नहीं किया इस दाग लगे दुपट्टे को फेंक देने की? "

"इस दिल ने ही तो रोक दिया और दिया सुझाव उसे सजाने का!"
"इस दिल ने ही कहा कि मत फेंक इसे!"
"कि ये दाग है प्रमाण किसी के निर्मल मन का,
कि ये दाग है गवाह किसी की जीत का,
कि ये दाग है साक्ष्य किसी के त्याग का।"

और ये सुन मेरी आँखें नम हो गयी,
कि ये देख मुझे झट से गले लगा लिया रंगरेज ने।

To be continued.....

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