सौगात

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सौगात

उस गुलदस्ते को आज भी फूलों से सजाती हूँ,
उन फूलों के मुरझाने से पहले आ जाना,
सहेज कर रखी हूँ तुम्हारी दी हुई चुनरी को,
जब सदी की सबसे जगमगाती रात आएगी,
मेरे स्वपन पूरे करने आ जाना।

“क्या कर पाओगी इंतजार मेरा?”
यह सवाल जब तुमने किया था,
तुम्हारे हाथों से उस चुनरी को लेकर,
“गहन होत है प्रेम, जत तू कर प्रतीक्षा,
हर प्रेम–गाथा की होत है अपनी परीक्षा।”
मुस्कुरा कर मैंने भी तुमसे यह कहा था।

तुम्हारे मनपसंद रंग में खुद को ज्यादा ढूंढती हूँ अब,
इंतजार में कटे हर दिन को गिन कर खुश हो जाती हूँ अब,
कोई हीरे–मोतियों वाला ताज सजे सिर पर ऐसी कोई चाह नहीं,
सजे अब तुम्हारी दी हुई चुनरी तो इससे बढ़ कर कोई और सौगात नहीं।

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दर्पण - मेरे मन का Where stories live. Discover now