माँ

310 20 24
                                    

माँ

निःस्वार्थ प्रेम सीखना है, तो माँ से सीखो,
समर्पण सीखना है, तो माँ से सीखो,
जिम्मेदारियाँ निभानी सीखनी है, तो माँ से सीखो,
बुरे वक्त में भी प्रेरणा बनना है, तो माँ से सीखो,
संस्कार भरने की कला सीखनी है, तो माँ से सीखो,

लगती है जब भी ठोकर तुम्ही याद आती हो माँ,
कड़वे बोल सहने पर तुम्हारा बहलाना-पुचकारना याद आता है माँ,
लगता है जब भी डर तुम्हारा आँचल याद आता है माँ,
हारने पर सबके मुंह फेर लेने पर तुम्हारा साथ याद आता है माँ,

ख्याल रखते-रखते कब दिन से रैन हो जाता,
तुम्हें पता भी नहीं चलता माँ,
हमारी ख्वाहिशो को पूरा करते - करते,
भूल जाती हो अपनी ख्वाहिशो को तुम माँ,
नहीं ताकत मेरे शब्दों में उतनी,
कि तुम्हारी छवि बना सके माँ,

बस इतनी प्रार्थना है कि न मिटे मुस्कान किसी भी माँ के चेहरे से माँ!

* अगर आपको यह कविता पसंद आयी है तो  vote, comment और share करना न भूले। अगर एक राज़ की बात बोलू तो आप इस कविता को अपनी माँ के साथ share करके उनके भी चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। 😉😊*

Oops! This image does not follow our content guidelines. To continue publishing, please remove it or upload a different image.

* अगर आपको यह कविता पसंद आयी है तो  vote, comment और share करना न भूले। अगर एक राज़ की बात बोलू तो आप इस कविता को अपनी माँ के साथ share करके उनके भी चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। 😉😊*

* अगर आपको यह कविता पसंद आयी है तो  vote, comment और share करना न भूले। अगर एक राज़ की बात बोलू तो आप इस कविता को अपनी माँ के साथ share करके उनके भी चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। 😉😊*

Oops! This image does not follow our content guidelines. To continue publishing, please remove it or upload a different image.
दर्पण - मेरे मन का Where stories live. Discover now