माँ
निःस्वार्थ प्रेम सीखना है, तो माँ से सीखो,
समर्पण सीखना है, तो माँ से सीखो,
जिम्मेदारियाँ निभानी सीखनी है, तो माँ से सीखो,
बुरे वक्त में भी प्रेरणा बनना है, तो माँ से सीखो,
संस्कार भरने की कला सीखनी है, तो माँ से सीखो,लगती है जब भी ठोकर तुम्ही याद आती हो माँ,
कड़वे बोल सहने पर तुम्हारा बहलाना-पुचकारना याद आता है माँ,
लगता है जब भी डर तुम्हारा आँचल याद आता है माँ,
हारने पर सबके मुंह फेर लेने पर तुम्हारा साथ याद आता है माँ,ख्याल रखते-रखते कब दिन से रैन हो जाता,
तुम्हें पता भी नहीं चलता माँ,
हमारी ख्वाहिशो को पूरा करते - करते,
भूल जाती हो अपनी ख्वाहिशो को तुम माँ,
नहीं ताकत मेरे शब्दों में उतनी,
कि तुम्हारी छवि बना सके माँ,बस इतनी प्रार्थना है कि न मिटे मुस्कान किसी भी माँ के चेहरे से माँ!
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दर्पण - मेरे मन का
Poetry'दर्पण- मेरे मन का' यह किताब मेरी हिंदी में लिखी कविताओ के लिए हैं। इस किताब में मैं अपने मन की भावनाओं को शब्दों में पिरोने का एक छोटा सा प्रयास की हूँ। आशा है कि आप सभी को मेरी कविताओ को पढ़ कर अच्छा लगेगा। #1 माँ out of 13 Stories on...