कौन जाने कौन कहाँ से,
एक रंग हैं सब जुबाँ से!
उनका कोई पैगाम नहीं है,
सारे ख़्वाब धुवाँ धुवाँ से!
दैर ओ हरम में उनकों सुनते हैं,
समझते हैं जो इन्सान ख़ुदा से!
आँख़ ए ऊदू झ़ील पें जैसे,
जमीन पे ठहरे हुए चाँद से!
क्या देश क्या भेद यारों,
यह हक़िक़ते बयाँ बयाँ से!
एक एक सब मिट जायेंगे,
नामों निशान यहाँ से!
जिसने दिल पे तिर चलाया,
लौट कर गया वहाँ से!