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दिल ही जाने दिल का ग़म हम सराया क्या जाने,
दर्द़ अपने जख़्म भी अपने कोई पराया क्या जाने!

देखता हैं ख़ुद चुपके आईना कोई शीशा क्या जाने,
देख कर ख़ुदग़र्ज़ ए साँया कोई हँसाया क्या जाने!

मर्ज़ हैं ख़ुदाया ए मोहब्बत कोई बचाया क्या जाने,
जूझ़ रहा है मौत से अपने कोई रुलाया क्या जाने!

दैर ओ हरम में रहने वालों कोई सीखाया क्या जाने,
इन्सान हो तुम इन्सान बनों कोई सताया क्या जाने!

मुख़्तसर हैं यह जिंदगी मोहब्बत निभाना क्या जाने,
नींद में चलने वालों को अब कोई जगाया क्या जाने!

धूप में चलतें चलतें झ़ील तक क़दम चलें तो चलें,
प्यासे की प्यासा समंदर प्यास बुझाना क्या जाने!

नाम लेता है हर कोई किसी का उनके मरने के बाद,
रहतें हैं हम साथ मगर दोस्त हाथ मिलाना क्या जाने!

दिल की बातें पत्थर को कोई समझाया क्या जाने,
किसने हैं किस को बनाया कोई ख़ुदाया क्या जाने!


दैर ओ हरम = चार दिवारों के बीच हिस्सा, मंदिर मस्जिद

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