कभी हँसाया तो कभी रुलाया

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कभी हँसाया तो कभी रुलाया मुझे,
हाँ मगर ख़ामोशीने गलेसे लगाया मुझे!

कभी कभी खिडक़ी से झाँकतें रहे मुझे,
कभी झुकाई नज़र तो कभी टकराई मुझे!

बातों बातों में उसने उलझ कर रख दिया,
थोड़ा सुन लिया मगर कुछ सुनाया मुझे!

कभी कभी सितारें जमीन पर आयें मगर,
कभी देखा ख्व़ाब तो कभी बनाया मुझे!

जब भी मिला महफिल में जुदा मिला मुझे,
कभी छोड़ दिया तो कभी हाथ मिलाया मुझे!

घरोंदे बनाना सिखा था किनारों पे रह कर,
ऊँगलियों से लिखा नाम फिर मिटाया उसने!

यूँ ही जब खेल खेल में हँसते रहें रोते रहें,
अगर कभी गिर गया तो हाथों से उठाया मुझे!

चलतें चलतें कई बार मेरा हाथ पकड़ लिया,
कभी रोका तो कभी होठों से छू लिया मुझे!

दिल ए नादाँ ही जब दिल दे बैठा उनकों,
कभी दिल में बसाया कभी बेघर किया मुझे!

झ़ील

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