टूटी फूटी शायरियाँ

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Author's Note

अब बचपन से तो कोई मिर्ज़ा ग़ालिब पैदा नही होता, और ना ही सबकी जिंदगी इतनी बर्बाद होती है की हर गम लफ्ज़ बन कर निकले, तो बस कुछ लोग कोशिश कर सकते है, जज्बातों को एक मौका दे सकते है, और अगर उनसे अगर कुछ टूटा फूटा अफ़साना या शायरी बन जाए तो इसमे गुस्सा होने वाली क्या बात है?

तो पेश है कुछ टूटी फूटी शायरी, या यूँ कह लीजिए दिल के वो ज़ज्बात जो बस कागज कलम तक सीमित है!  

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      1      

क्यूँ फिक्र करता है सुकून-ए-मौत की,

ज़िंदगी को मौका दे

वो तुझे हर रोज मारेगी!

      2       

हाल पूछ कर क्यूँ सताती हो,

मैं तो राख सा बिखरा हूँ, तुम अपनी कहो!

      3      

तुम्हारे जिक़्र भर से नज़रें शून्य में दौड़ जाती है,

ख्यालो में ना जाने मेरी कश्ती कहाँ डूब जाती है!

      4      

ज़माने का बाज़ार देख मैं मुस्कुरा क्या दिया,

हल्ला अब यह फैला है की मैं हसी बेचने आया हूँ!



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Alvida. 

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