"सिसके-2 सहमें-2"

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यह कैसे पाषाण पिघल कर आज वहें हैं
   ज्वालामुखी फटा है कोई या
    अम्बर से शोले बरसे हैं

  धरती का सीना चीरा है
  नदियों के पत्थर टकराए
  कैसे फिसले रूक न पाए
  ध्वस्त हुए अस्तित्व-हीन हो

    गर्व से मस्तक ऊँचा करके
जो छूने आकाश चले थे
    मौन धरा पर पड़े हुए हैं
  सिसके-सिसके सहमें-सहमें

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