प्रतिबिम्ब उनका दर्पण क्यों खोजता रहा है
किस चाह से वह उनको नित ढूँढता रहा है
वह आएँ उसके सन्मुख निज रूप को सँवारे
माथे लगाए बिंदिया अधरों को वह सँवारे
फिर मुस्कुरा कर देखें कैसा है रूप उनकादर्पण यह सोचता है आख़िर परेशाँ क्यों है ?
दर्पण से खुद ही कह दें वह बात अपने दिल की
जब से जुदा हुए है वह लौट कर न आए
वायदे किये जो हमसे कहीं भूल वह न जाएँ।।