'विज्ञान व कला का योग'

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विज्ञान एकाग्रता के सिवा कुछ नहीं
दोनों में गहरा सम्बन्ध
अधूरेपन में हम  अपना जीवन जीते
पूरा कहाँ जी पाते है
जब लेकिन एकाग्र होते
पूर्णता से जीवन शुरू करते हैं तब
चेतना,चिंतन और चित्त में
नए-नए रहस्य खुलते

किसी रूप,रंग,छवि,वस्तु, और विषय पर जब
हम मन को टिकाने का या केन्द्रित करने का
प्रयोग और प्रयास करते हैं वही तो
धारणा होती है
यूँ भी कह सकते हम इसको
शरीर के बाहर या भीतर कहीं भी
किसी एक प्रदेश मे
चित्त का ठहरना धारणा है
विज्ञान धारणा में सिमटता
एकाग्रता जिसमें प्रमुख होती
संबंध इनका
बाहरी दुनिया से होता है

एकाग्रता से आगे का पथ ध्यान
विज्ञान और वैज्ञानिकता से बहुत दूर है
ध्यान का पथ रचनात्मकता,व मौलिकता का है
अपनों से है,बाहर से नहीं
गहरी अनुभूति जब ध्यान के साथ होती है
अनायास ही ध्यान संघ जाता है
गहरे कलाकार यह ध्यान साध लेते
तभी तो उनके काव्य में
रहस्यदर्शीयों की सी झलक मिलती है
कितनी ही बार ऐसा कुछ कह देते
गद्य में जो कभी नहीं कहा जा सकता
कलाकृतियाँ झलक ऐसी दे जाती
अभिव्यक्त जिन्हें किया ही नहीं जा सकता

योगी की स्थिति कलाकार और वैज्ञानिक से
आगे की होती है
वैज्ञानिक बाहर है,कलाकार भीतर,लेकिन
योगी बाहर भी जा सकता है और
अंदर  भी रह सकता है
दोनों धुर्वो के बीच समान रूप से
गतिमान हो सकता है यही नहीं
इन दोनों के पार भी उसकी गति और उपस्थिति है
जिसे समाधि कहते हैं जिसमें योगी अवस्थित होता है
जहाँ ध्यान गाढ़ा और गहरा हो जाता है
इसीलिए तो
वैज्ञानिक की अवस्था धारणा (एकाग्रता)
कलाकार की अवस्था-ध्यान और योगी की स्थिति को
समाधि कहते हैं ।

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