"मुस्का रहा हूँ मैं"

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कलियों का हुस्न देखकर घबरा गया हूँ काँटों से घिरा हूँ मगर मुस्का रहा हूँ मैं
जिन्दा दिली है मेरी या है कर्म किसी का
आँसू के घूँट पीकर भी मुस्का रहा हूँ मैं

कलियों का हुस्न देखकर  घबरा गया हूँ काँटों से घिरा हूँ मगर मुस्का रहा हूँ मैं जिन्दा दिली है मेरी या है कर्म किसी काआँसू के घूँट पीकर भी मुस्का रहा हूँ मैं

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शिकवे थे बहुत उनसे मगर चुप जुवाँ रही
अब उनकी बेरूखी को करम कह रहा हूँ मैं

नशतर में उनके तीर हैं बाकी अभी बहुत
घायल वह कर रहे हैं और मुस्का रहा हूँ मैं
हर एक उनके जख्म पर मरहम लगा के मैं
बस शुक्रिया ही उनका अदा कर रहा हूँ मैं ।

KavyangaliWhere stories live. Discover now