मेरे हाथों मे कुछ भी नहीं है इन लकीरों के सिवा,
भुला सके तो भुला दो तुम ही मुझको,
मेरी जिंदगी में कुछ भी नहीं है तनहाइयों के सिवा!तुझको भी है यकीनन भरोसा मगर फ़िर भी,
मिलेगा कुछ भी नहीं पाकर मुझको,
मेरे घर कुछ भी नहीं है सिर्फ दीवारों के सिवा!किया है बंद इस झील की आँखों में तुझको,
गिरा सकें तो गिरा दो नज़र से अपनी,
मेरी जज़्बात में कुछ भी नहीं है सितारों के सिवा!अगर मिलना है तो मिल जायेंगे अगले जनम में,
मिटा सके तो मिटा दो मुझको तुम,
मेरे होठों पर कुछ भी नहीं है दुवा ओं के सिवा!ख़्वाब देखे हैं बहोत देखीं है दुनिया सारी हमने,
छुपा सकें तो छुपा लो दामन अपना,
भरे हुए बाज़ार में कुछ भी नहीं ग़ैरों के सिवा!हमने माना है कि मोहब्बत ए ग़ुनाह किया है मैंने,
जला सकें तो जला दो ख़त वह सारे,
मेरे दिल में कुछ भी नहीं है चिराग़ों के सिवा!हर तरफ़ धूप ही धूप है खेल सिर्फ़ छाँव का है,
निकल सकें तो निकल जाओ घर अपने,
मेरे इस शहर में कुछ भी नहीं है मीनारों के सिवा!
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अक़्स
General Fictionwinner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...