मैंने एक खाब देखा है ,
पर उसे हकीकत बनते देखना चाहती हूँ !लोगों से लड़ झगड़कर देख तो लिया ,
बस अब थोड़ा सा सुकून और चाहती हूँ !दिल पर खाब का बोझ नहीं ,
आज़ादी की उड़ान भरना चाहती हूँ !
अब बस दुनिया को यह साबित करना चाहती हूँ ,
की मैंने खाब तो देखा है ,
पर उसे हकीकत बनाना जानती हूँ !यह ज़िद है मेरी , या भरोसा नहीं पता ,
अब ज़िद भी और भरोसा भी
साथ लेकर उड़ना चाहती हूँ ,
मैंने एक खाब देखा है ,
उसे हकीकत बनता देखना चाहती हूँ .यह खाब है ,कोई धोका नहीं ,
यह समझाना चाहती हूँ .
मेरे खाब के इन पैरों में ,
कोवत बांधना चाहती हूँ !मजबूरी की ज़ंजीर नहीं,हिम्मत की ज्वाला चाहती हूँ ,
इस दुनिया की बंधी आंखों की पाती
अब उतरना चाहती हूँ .
मैंने एक खाब देखा है ,
उसे हकीकत बनाना जानती हूँ !............
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Syaahi !
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