रात के चार बज रहे थे, मोमबत्ती जलकर बुझ चुकी थी। उसका नारीवाद भी अब उस मोमबत्ती की तरह जलकर पिघल चुका था। कायरा की ऑंखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी। वह तुलना कर रही थी कि एक कल की रात जो खुशबुओं में लिपटी हुई और नई तमन्नाओं से नहाई हुई थी, और एक यह रात जो बेबसी की स्याह को ओढ़ी हुई है। मैंने भी समर्पण नहीं किया था, शरीर से तो घायल नहीं हुई पर मन में गहरी चोट लग गई है। यह ऐसी चोट है जो वक्त के साथ भरेगी या नहीं कह भी नहीं सकती। आज शायद एक और निर्भया मर गई, और किसी को कानो-कान खबर तक नहीं लगी। आज शायद कोई भी इस निर्भया के लिए कैंडलमार्च नहीं निकालेगा, रोज ऐसी कहानियॉं घटती हैं, आज फिर घट गई।
1 part