शब्द

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रात की तन्हाई में

अंधेरों की गहराई में

मेरे दिल की इस ख़ामोशी में

ये शब्द ही तो हैं

जो मेरा साथ देते हैं

मेरे गम को

ख़ुशी के हर लम्हे को

कागज़ पर कलम से उकेरते हैं

ना होते ये शब्द जो

तो क्या बयां कर पाती

अपने जज़्बातों को

क्या कह पाती कि

"हाँ मेरा भी दिल टूटा है!"

तोङा था उस बेदर्दी ने

शायद वो भी

भूले बिसरे याद करता होगा

के कभी उस पागल से मिला था

जिसके अल्फ़ाज़ों ने उसके दिल को छुआ था

शायद वो भी लिखता होगा कभी मेरे बारे में

इन्ही शब्दों में ज़ाहिर करता होगा अपने अहसासों को

पर अब तो वो भूली याद है

सूखे पतझड़ के समान है

जो बसन्त के आने पर

फिर भुला दिया जाता है ।

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Kanchan Mehta 😙

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