जुदाई

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उसको खोकर मुक्कमल ये जहाँ न रहा
न जमीं रही पूरी , पूरा आसमां न रहा
खुदा होने का इरादा कब था मेरा दोस्तों
उससे होकर अलग मैं पूरा इंसा न रहा

दुनिया की बेवफाईयों से वाकिफ था मैं
होकर उससे जुदा, खुदा पर इंमा न रहा 

फूलोंमें उसके साथ रहनेके ख्वाब देखेथे
जब वो गया पास कोई गुलिस्तां न रहा

पूरी कायनात में अक्स उसका जाहिरथा
जाने वो गया कैसे कि कोई निशां न रहा

इश्क का शौक हम दोनों ही रखते थे
क्यों उसे ये शौक वक्त ए रवाँ न रहा

कहता था कि मेरे दिल में उसका बसेरा है
क्या हुआ जो वो दिलबर अब यहाँ न रहा 

अनुज

शायरी ,कविता, प्यार और कुछ जिंदगी Where stories live. Discover now