उसको खोकर मुक्कमल ये जहाँ न रहा
न जमीं रही पूरी , पूरा आसमां न रहा
खुदा होने का इरादा कब था मेरा दोस्तों
उससे होकर अलग मैं पूरा इंसा न रहादुनिया की बेवफाईयों से वाकिफ था मैं
होकर उससे जुदा, खुदा पर इंमा न रहाफूलोंमें उसके साथ रहनेके ख्वाब देखेथे
जब वो गया पास कोई गुलिस्तां न रहापूरी कायनात में अक्स उसका जाहिरथा
जाने वो गया कैसे कि कोई निशां न रहाइश्क का शौक हम दोनों ही रखते थे
क्यों उसे ये शौक वक्त ए रवाँ न रहाकहता था कि मेरे दिल में उसका बसेरा है
क्या हुआ जो वो दिलबर अब यहाँ न रहाअनुज
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शायरी ,कविता, प्यार और कुछ जिंदगी
Poetryकुछ कविताएँ कुछ शायरी ,कुछ जिंदगी की बातें ,जिनको पढकर आप अच्छा महसूस करेंगे