हुनर

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" हुनर"

गैरों से क्या हम जिक्र करें, अब उसकी बेवफाई का
खुद अभी तक समझा नहीं, सबब उससे जुदाई का 

कुछ और नहीं चाहा मैनें, सिर्फ उसके साथ के सिवा
फिर क्यों मिला मुस्लसल, ये मौसम मुझे तन्हाई का

जिंदगी में वैसे कई, साथ निभाने के लिये राजी थे
किस्मत में मगर लिखा था, साथ उस हरजाई का

खुदा अगर कुछ छीनता है तो बदले में कुछ देता है
ये शायरी का हुनर मुआवजा है, उसकी बेवफाई का

शायरी ,कविता, प्यार और कुछ जिंदगी Where stories live. Discover now