शाम

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अब मेरी सुबह भी नहीं, अब मेरी शाम भी नहीं
तेरी याद के सिवा, मुझे कोई और काम भी नहीं

तुम दूर तो गये हमसे, पर दिल से जुदा न हुऐ
तेरे इस दर्द के सिवा, मुझे कहीं आराम भी नहीं

बस एक शक्ल याद है, बाकी सब धुंधले चेहरे हैं
तेरे नाम के सिवा, याद कोई और नाम भी नहीं

दुनिया के हर मैखाने की, मय चख ली है हमने
तेरी नजरों से जो पिया था, वैसा जाम भी नहीं

मैं जहाँ पर भी गया, लोगों ने बहुत चाहा है मुझे
मगर तुने जो दिया था, वैसा सलाम भी नहीं

ये मेरी नज्म, क्या सुना पायेगी दिल का हाल
चुप रह कर तुने जो दिया, वैसा पैगाम भी नहीं

हर पल जिंदगी का, कह रहा है मुझसे ये बात
तेरे पहलु में हमने जो गुजरी, वैसी शाम भी नहीं

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