जब बंसी को अपनी दूसरी तरकीब में असफलता मिली तो इसे देखकर बंसी ने समझ लिया कि तीसरा तरीका ही सबसे सही साबित होगा।
जब तक वह दूसरों को शामिल करके अपने फ़ैसले करता रहेगा तब तक कुछ ना कुछ ऐसा होता रहेगा जो उसने नहीं सोचा होगा।
लेकिन अगर वह खुद कमाई करेगा तो वह अपने पिता की मदद भी कर सकेगा और इससे उसके पास अपनी बांसुरी खरीदने के भी पैसे आ जाएंगे।
इस बात में कोई अड़चन ना देखते हुए बंसी बहुत खुश हो गया।
अब बंसी ने अपने लिए नौकरी ढूँढना शुरू किया। उसने सबसे पहले ध्यान लगाकर सोचा कि उसने बच्चों को कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है।
उसने उन्हीं जगहों को चुना जहाँ उसे लगा कि लोग बच्चों को काम पर रख सकते हैं।
सबसे पहले वह एक दुकान पर गया।
बंसी ने कई बार इस दुकान से समान लिया था और इसीलिए उसे पता था कि वह दुकानदार बच्चों को वह काम करने के लिए रख लेता है जो उससे नहीं हो पाते हैं।
बंसी उस दुकान पर गया और उसने दुकानदार से पूरे आत्मविश्वास के साथ और निडर होकर कह दिया, 'भाई साहब, मुझे कोई नौकरी चाहिए। क्या आप मुझे नौकरी पर रख सकते हैं?'
पहले तो दुकानदार बंसी को पहचान गया और वह थोड़ा सा चौंका भी। लेकिन जब बंसी ने उससे मुद्दे की बात की तो उसने सीधा जवाब देना ही बेहतर समझा।
दुकानदार ने कहा, 'अगर तुम्हें अच्छा हिसाब करना और पढ़ना-लिखना आता हो तो मैं तुम्हें अभी नौकरी दे दूंगा।'
नौकरी सामने होते हुए भी वह हाँ कहकर हामी नहीं भर सका। क्यों? क्योंकि उसे ना तो हिसाब-किताब आता था और ना ही बड़ों की तरह पढ़ना-लिखना आता था।
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बंसी राम और उसकी सीख
Short Storyबंसी राम बांसुरी अच्छी बजाता है। यह कहानी है नई बांसुरी ख़रीदने के लिए पैसे लाने के प्रति एक बच्चे की सोच और तरकीब। बंसी के पिता उसे समझाते हैं। बंसी हर सम्भव कोशिश करता है। दिमाग़ लगाकर वह तीन रास्ते निकालता है जिससे उसे बंसी...