बांसुरी की दुकान

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जब बंसी का पहला रास्ता सफल नहीं हुआ तो उसने सोचा कि उसे अपनी सफलता के लिए दूसरे रास्ते के बारे में सोचना चाहिए।

अब उसने यह फ़ैसला किया कि इस बार वो असल में कुछ भी करने से पहले उसके बारे में अच्छी तरह से सोच लेगा ताकि फिर उसे असफलता का सामना ना करना पड़े।

बंसी ने पूरी तरह से इससे सम्बंधित परिणाम और सम्भावनाओं के बारे में सोचा।

जब उसे यक़ीन हो गया कि इस रास्ते में उसे कोई असफलता नहीं होनी चाहिए तब वह इसे करने के लिए आगे बढ़ गया।

जब उसे यक़ीन हो गया कि इस रास्ते में उसे कोई असफलता नहीं होनी चाहिए तब वह इसे करने के लिए आगे बढ़ गया।

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दूसरी बात सोचकर बंसी एक बांसुरी की दुकान पर गया। 

बंसी ने एक मशहूर दुकान चुनी थी। लेकिन इसमें भीड़ भी बहुत थी।

वहाँ जाकर उसने व्यस्त दुकानदार को देखा। उस तरफ़ एक नज़र डालकर ही उसको समझ आ गया कि वह दुकान के लोग किसी को भी ज़्यादा समय नहीं दे रहे हैं।

बंसी ने सोचा, 'दुकानदार तो इतना व्यस्त है! क्या यह मुझसे बात भी करेगा?'

थोड़ी देर तो बंसी आस-पास ही घूमता रहा। 

वो ये जताने की पूरी कोशिश कर रहा था कि उसे समय देना दुकान वालों के लिए समय की बर्बादी नहीं होगी। 

लेकिन आख़िरकार, जब उसे लगा कि उसका ऐसा करना किसी काम नहीं आने वाला, तो डरकर बंसी ने अपनी बात उस दुकानदार से कही, 'भाई साहब, क्या आपके पास बांसुरी है?'

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लेकिन आख़िरकार, जब उसे लगा कि उसका ऐसा करना किसी काम नहीं आने वाला, तो डरकर बंसी ने अपनी बात उस दुकानदार से कही, 'भाई साहब, क्या आपके पास बांसुरी है?'

दुकानदार ने हंसकर कहा, 'बेटा, ये बांसुरी की ही दुकान है।'

ख़ुदपर ही शर्मिंदा होकर और हड़बड़ाकर बंसी ने जल्दीबाज़ी में कहा, 'क्या आपके पास कोई कम कीमत की बांसुरी है?'


यह बात सुनकर दुकानदार थोड़ी देर तो चुप हो गया। उसके चुप होने से बंसी भी थोड़ा और घबरा गया। 

बच्चे को घबराता देख दुकानदार ने बात सम्भाली और उसने कहा, 'इन बांसुरी की क़ीमत ज़्यादा नहीं है बेटा।'

बंसी ने कहा, 'क्या मुझे दस रुपय में कोई बांसुरी मिल जाएगी?'

दुकानदार ने बंसी की तरफ़ देखा और मुस्कुराकर उसे समझाया, 'बेटा, इनमें से हर एक बांसुरी को बनाने में मैंने बहुत मेहनत की है। और इसके बाद भी, मेरी बांसुरी के दाम बाज़ार में सबसे कम हैं।'

ऐसा कहकर दुकानदार ने अपनी बात तो रख दी लेकिन फिर बंसी के पास कहने को और कुछ नहीं रहा।

इस बात को सुनकर बंसी चुप हो गया। 

उसे खुद ही शर्मिंदगी हुई। 


उसने अपनी ज़रूरत तो समझी लेकिन उसने यह नहीं सोचा कि दुकानदार ने भी बांसुरी बनाने में बहुत मेहनत की है। 

इस मेहनत के लिए उसने किसी की दया का सहारा नहीं लिया। उसने मेहनत करके चीज़ बनाई है और इसके वाजिब दाम रखे हैं।

तो फिर बंसी अपनी बात उससे कैसे कहता? 

उस बात को वहीं ख़त्म करने के लिए बंसी ने दुकानदार से कहा, 'समझ गया। मुझे जब भी अपनी बांसुरी ख़रीदनी होगी तो मैं आपकी दुकान पर ही आऊँगा क्योंकि मुझे पता होगा कि आप बेहतरीन बांसुरी ही बनाते हैं। मैं अपने पिता जी को बता दूंगा। अभी मैं चलता हूँ।'

इस बात को यहीं ख़त्म करके बंसी ने अब सोच लिया कि उसके अपना तीसरा तरीक़ा ही आज़माना होगा। और अब उसे यक़ीन था कि ये तरीक़ा उसे ज़रूर सफलता दिला देगा।

बंसी राम और उसकी सीखजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें