बंसी राम की चाह

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बंसी राम बहुत अच्छी बांसुरी बजाता था। 

वह अपना ज़्यादा समय बांसुरी बजाने में बिताता था।

उसकी बांसुरी की आवाज़ सुनकर सब हैरान रह जाते थे। 

लेकिन, बंसी बहुत ग़रीब था।

लेकिन, बंसी बहुत ग़रीब था।

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बंसी के पिता, महेश लाल, ने उसे पास की पाठशाला में प्रवेश दिला दिया था। 

लेकिन, उसका ज़्यादातर ध्यान बांसुरी पर था। इस वजह से वह पढ़ाई पर ज़्यादा ध्यान नहीं देता था।


जब बंसी के पिता ने उससे पुछा, "तुम पढ़ाई में ध्यान क्यों नहीं लगाते हो?"

इसपर बंसी ने जवाब दिया, "मेरी असली कला तो बांसुरी है। और मुझे इसमें उस पढ़ाई की ज़रूरत नहीं है जो पाठशाला में सिखाई जाती है।"


इस बात पर बंसी के पिता ने फिर उससे कुछ और नहीं कहा।

बंसी के पिता उसे अपनी कला से दूर नहीं रखना चाहते थे। इसीलिए, उन्होनें बंसी को अपनी बचपन की बांसुरी दे दी थी।

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बंसी के पिता उसे अपनी कला से दूर नहीं रखना चाहते थे। इसीलिए, उन्होनें बंसी को अपनी बचपन की बांसुरी दे दी थी।


बंसी अपने पिता की पुरानी बांसुरी बजाया करता था। इसपर उसके कुछ दोस्त उसे चिढ़ाते थे।

एक दिन उसने यह तय कर लिया कि वो एक नई बांसुरी खरीदेग।

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