रेडियो

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बीच के किनारे लोहे की इस बेंच पर बैठा हुआ मैं, देख रहा हूँ अपने अतीत को बहता हुआ। यह वही जगह है जहाँ मेरे बाबा मुझे अपने कंधे पर बैठा कर घुमाया करते थे और उसी तरह मैं अपने बेटे को घुमाया करता था।
समय कितनी जल्दी बीत जाता है ना। अब लगता है की कितना कुछ था जिसे मैं जी सकता था और कितना कुछ अभी भी जीना बाकी है। पर मुझें किसी भी बात का कोई मलाल नहीं है। मेरे साथ मेरा अधूरापन साथ चलता है। यह तब तक मेरे साथ रहेगा जब तक मैं जिंदा हूँ। उम्र की इस दहलीज़ पे आ कर इतना अकेलापन महसूस होगा, इसका अंदाज़ा मुझें कभी नहीं था। दुःख इस बात का नहीं है की मैं अकेला हूँ बल्कि इस बात का है की मुझसे भी ज्यादा दुःखी और अकेला इस वक़्त मेरा दोस्त है- सुब्रमण्यम।
हम पिछले 5 साल से साथ काम कर रहे है। इस दौरान हमारी दोस्ती कब ऑफिस टेबल से निकल कर, छुट्टी के बाद टापरी पर चाय पीने तक पहुँच गयी, यह मुझें याद नहीं। पर जब भी मैं हताशा और चिंताओं से घिर जाता तो वो सुब्रमण्यम ही होता जो मुझे हमेशा खुश रहने की सलाह देता। बाहर से इतना खुश और हमेशा मुझें हँसाने वाला मेरा दोस्त, ख़ुद कितना अकेला और दुःखी था ये मुझे तब पता चला जब मैं उसके घर गया।
वो गुड़िया जो उसने अपनी पोती के लिए ले रहा है कह कर ख़रीदी थी असल में वो उसकी पोती थी ही नहीं, न ही वो उसका बेटा था जिसने मुझे पानी का ग्लास ला कर दिया। वो तो उसका मकान मालिक था। मेरे दोस्त ने तो कभी शादी ही नहीं की। तो वो अब तक मुझसे सिर्फ झूठ बोलता रहा अपने परिवार के बारे में।
आज यह हवाएँ मन को कितनी ठंडक दे रही है। आँखे बंद करता हूँ तो मुझे एक संगीत सुनाई देता है। रेडियो में बजता हुआ संगीत। आह.. मेरा पुराना रेडियो, मेरे पिताजी को माँ ने तोहफ़े में दिया था। पिताजी काम से लौटने के बाद पूरा वक़्त सिर्फ उसे ही सुनते रहते थे। पिताजी के देहांत के बाद मैंने वो रेडियो उनकी याद में अब तक संभाल कर रखा है। जब भी उसे बजाता हूँ तो लगता है की मेरे माँ-बाप मेरे आस-पास मौजूद है, मुझसे बातें कर रहे है। तभी तो मेरी जान बस्ती है उस रेडियो में।
आज तो समुद्र काफी उफ़ान में है। काले बादल भी अब घिरने लगे है। सूरज समुद्र में डूबता जा रहा है। पंछी अपने घोसालों में जल्द से जल्द पहुँच जाना चाहते है।
लगता है थोड़ी देर में बारिश शुरू हो जाएगी। आते वक़्त अनु कह ही रही थी कि "अपने साथ छाता ले जाओ, बारिश हो सकती है आज"। पता नहीं उसे कैसे मालूम हो जाता है की कब बारिश होगी और कब नहीं। उसे तो मौसम विभाग में होना चाहिए था। हमेशा बादल देख कर मौसम का मिजाज़ बता देती है। अब उसकी भी उम्र हो चली है।
45 साल होने को आए हमारी शादी को, वो किसी साये के समान मेरा साथ देती रही। यहाँ तक भी ठीक था पर अब तो वो मुझे एक छोटा बच्चा समझती है। कहती है- "बुढ़ापे में आदमी वापस बच्चा हो जाता है"। उसकी इस बात को सुन कर मुझें हमेशा हँसी आ जाती है। क्योंकि मेरे साथ वो भी तो बुड्ढी हो रही है।
कभी-कभी मुझें उसकी फ़िक्र होती है कि मेरे चले जाने के बाद उसका क्या होगा। वो तो अंदर तक टूट जाएगी।
बहुत प्यार जो करती है मुझसे। तभी तो मुझें कभी अकेला छोड़ कर नहीं गयी। मेरे बेटे ने उसे अपने पास रहने के लिए बहुत बार बोला लेकिन वो मुझें ऐसे अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी। कहती है "मैं चली गयी तो तुम्हारा ध्यान कौन रखेगा ?" सच कहती है उसके बिना तो मेरा जीवन अधूरा ही है।

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