वीर सिंह - यह करना आवश्यक था क्योंकि तुम्हारे वस्त्र जल में भींग चुके थे। ऐसे में कोई तुम्हे देखेगा तो अच्छा नहीं लगेगा।
वीरांगना - और तुम्हारे देखने से अच्छा लगेगा?
वीर सिंह - (ऊंचे स्वर में) बस! हमारी तुलना दूसरो से करने से पूर्व तुम्हे बता दें कि हम सम्राट है पूरे स्वर्नगढ़ के और तुम्हारे भी। हमारी दया का आनुचित लाभ उठाने की भूलकर भी मत सोचना।
तभी वहां अग्रसेन अपने अश्व के साथ आता है और वीर सिंह को प्रणाम करता है। वह वीर सिंह को राजमाता का संदेश सुनता है। वह कहता है कि राजमाता की इच्छा है कि आप शीघ्र अति शीघ्र राजमहल में प्रवेश करे।
"कुछ अति महत्वपूर्ण जानकारी आपको देनी है जो कि इस समय यहां आपको नहीं दे सकते।"
वीर सिंह, अग्रसेन की बाते सुनकर राजमहल के लिए तुरंत निकलने का निश्चय करता है।
अग्रसेन वीरांगना को इस तरह देखकर चोंक जाता है क्योंकि इससे पूर्व किसी लड़की, बच्ची अथवा किसी स्त्री को वीर सिंह ने अपने समक्ष खड़े होने का अवसर नहीं दिया और वो भी तब, जब उस लड़की या स्त्री का मन ही क्यों न हों वीर सिंह के साथ रहना का अथवा बात करने का परन्तु वीरांगना के भाव ठीक विपरीत लग रहे थे। कोई भी देखते ही केह देगा कि वह अपनी इच्छा से वीर सिंह के साथ खड़ी नहीं है परन्तु फिर भी वीर सिंह उसके इच्छा के विरुद्ध उसके साथ खड़े है। अग्रसेन के मन में बहुत सारे प्रश्न उठ रहे थे। वह वीर सिंह से कुछ पूछता इससे पहले ही वीर सिंह उसे जाने की आज्ञा दे देता है। वह वीर सिंह से जाने का आदेश सुनकर वह कुछ पूछ नहीं पाता है। अतः वह दुखी मन से अपने अश्व पर बैठकर राजमहल की और निकल जाता है ।
( वीरांगना और वीर सिंह एक बार फिर एकांत रह जाते है जिसके कारण वीरांगना भयभीत हो जाती हैं।)
वीर सिंह, वीरांगना की ओर बढ़ने लगता है। वीरांगना वहां से पीछे घने वन की ओर भागने लगती है। वह दौड़ने में पूरा बल लगा देती है। वीर सिंह बहुत मुस्कुराते हुए आगे बढ़ रहा होता है। वीरांगना पीछे मुड़ के देखती है कि वह वीर सिंह से काफी दूर निकल गई है। फिर भी वीर सिंह इतने आराम से और मुस्कुराहट के साथ धीरे - धीरे आगे बढ़ रहा था। वह कुछ भी समझ नहीं पाई, पर वह एक बार पुनः प्रसन्न हो गई। देखते ही देखते वह बहुत दूर निकल गई और जब पीछे मुड़ कर देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गई। उसने देखा कि न तो वीर सिंह दिखाई दे रहा था और न ही उसका प्रिय अश्व। वीरांगना सोचने लगी कि कदापि वीर सिंह को अपनी भूल का पछतावा हो गया होगा इसलिए वह उसे छोड़ कर चला गया होगा परन्तु फिर भी न जाने क्यों उसे वह सोच में पड़ गई की इतनी जल्दी वीर सिंह का हृदय परिवर्तित कैसे हो गया। वीरांगना पुनः एक अंतिम बार पीछे पलट कर देखती है, उसे पलटते समय भय लग रहा होता है की कही वह पीछे मुड़ कर देखे तो उसे वीर सिंह अपने अश्व के साथ आते हुए दिखाई न दे दे। परन्तु जब वह पीछे मुड़ती है तो उसे ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता है और फिर वह भयमुक्त होकर बहुत अधिक प्रसन्नता के साथ, जैसे ही आगे बढ़ने के लिए आगे देखते हुए अपने कदम बढ़ाती है, वह किसी से टकरा जाती हैं, वह जैसे ही ऊपर देखती है, वह भय के कारण झटके से पीछे हट जाती हैं। उसके समक्ष अन्य कोई नहीं अपितु स्वयं वीर सिंह मुस्कुराते हुए खड़ा था। वीरांगना की आंखों में आंसू आ जाते है और वह रोने लगती हैं। वीर सिंह उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने समीप लाकर उससे कहता है।
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Veerangna -A Beautiful Love story
RomanceHi guys! this is my first story Which i am TRANSLATING IN HINDI. If many of you guys wanted to read Indian historical stories in hindi language just join me here. I am not gonna tell you summary of this story, You have to find it by reading it...