Chapter-5

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वीर सिंह - मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं यह मुझे तुमसे पूछने की आवश्यकता नहीं है, मुझे बताने से ज़्यादा अच्छा है कि तुम उसके विषय में सोचो जो में तुम्हारे साथ करने वाला हूं क्योंंकि आज जो में करने वाला हूं, मेरा विश्वास करो मैने इससे पूर्व कभी भी किसी के साथ नहीं किया है। ऐसा कहकर वह वीरांगना की आंखो में अत्यंत निकट से देखने लगता है। वह अपनी आंखे भय के कारण बंद कर लेती है। यह देखकर वीर सिंह उसे खींचकर सरोवर से बाहर उस वृक्ष के निकट ले आता है जहां उसका प्रिय अश्व बंधा हुआ रहता है।
वीर सिंह का मंत्री अग्रसेन, उसी दिशा में उसे ढूंढ़ते हुए आ रहा होता है। अग्रसेन का स्वर वीर सिंह पहचान लेता है और वह तुरंत वीरांगना के लटकते हुए आंचल से एक छोटा सा टुकड़ा फारकर उससे वीरांगना के हाथ बांध देता है और अपने अंगवस्त्र को खोलकर उसके भीगे वस्त्रों के ऊपर से उडा देता है। वीरांगना उसकी और देखने लगती है।

To Be Continued in Chapter-6
Sorry Friends I know this Chapter is Too Short.










Veerangna -A Beautiful Love storyWhere stories live. Discover now