Chapter - 4

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वीरांगना उस स्थान से भागते हुए मदकिनी तट की ओर पड़ने वाले जंगलों में चली जाती है। यह सोचकर की वहां उस घने वन के बीच उसे कोई भी नहीं खोज पाएगा पर सैनिक उसका पीछा करते - करते वहां भी पहुंच जाते है। वीरांगना भागते - भागते वहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित मंदाकिनी तट पर पहुंच जाती है, वह भागते - भागते अत्यंत थक जाती है। अब उसके पैर जवाब देने लगते है तथा सैनिकों के घोड़ों की आवाज़ तीव्र होने लगती है। उसे एक ही भय सता रहा था कि यदि सैनिकों ने उसे बंदी  बना लिया तो उसे एक बार फिर उस दुष्ट वीर सिंह के निकट जाना पड़ेगा और जो कि वह सह नहीं पाएगी। अतः वह छिपने का निश्चय करती है क्योंकि अब वह भाग नहीं सकती क्योंकि ऐसा करने का अर्थ ही पकड़े जाने है। अतः वह इधर - उधर हर जगह देखती है किन्तु उसे छिपने का कोई स्थान नहीं मिलता है। वह अत्यंत परेशान हो जाती है कि तभी उसकी नजर नदी के जल में पड़ती है और उसे एक विचार आता है कि नदी से बेहतर छिपने का कोई स्थान नहीं है और वह समय नष्ट न करते हुए नदी में कूद पड़ती हैं और नदी के गहरे जल में श्वास (Breathing) बंद करके छिप जाती है। वीर सिंह जो कि पहले से ही जल में स्नान कर रहा होता है, जल से तुरंत बाहर उठकर देखता है पर उसे कोई दिखाई नहीं देता। वह मन में सोचने लगता है कि वो किसकी आवाज़ आई थी जब मैं जल के भीतर था। वह सोचता है कि अवश्य ही यह उसका भ्रम होगा। तभी सैनिकों का दल वीरांगना को ढूंढते - ढूंढते वहां आते हैं। वीर सिंह जब देखता कि वीरांगना को अभी तक वह पकड़ नहीं पाए हैं, वह अत्यंत क्रोधित हो जाता है और उन्हें अंतिम अवसर देता है वीरांगना को पकड़ ने के लिए और क्रोधित होकर (ऊचे स्वर में) कहता है कि यदि वह इस बार भी वीरांगना को पकड़ने में असफल रहे तो वह.............

                     (इतना ही केहता है )

कि तभी प्रधान सेनापत्ती कहता है क्षमा किजिए महाराज हमें अंतिम अवसर प्रदान करे।

वीर सिंह - जाओ और जाकर उसे हमारे सामने उपस्थित करो। जाओ!!

ये सुनते ही सभी सैनिक घुड़सवार वहां से झ्टपट चले जाते है। 
     
                  वीर सिंह तेराकी के लिए जल के भीतर प्रवेश करने ही वाला होता है कि तभी उससे कुछ ही दूरी पर जल में हलचल होने लगता है और वह देखता है कि कोई कोई लड़की आगे को देखती हुई जल से बाहर अपना आधा शरीर निकालती है। उस लड़की के वस्त्रों को देखकर वीर सिंह को एसा प्रतीत होता है जैसे कुछ ही समय पूर्व उसने ऐसा ही वस्त्र पहने किसी को देखा है और उसे कुछ ही क्षण लगते है वीरांगना को पहचानने में। वीरांगना ने यह नहीं देखा था कि ठीक उसके पीछे वीर सिंह खड़ा है। वह हाथ जोड़कर अपने भगवान को धन्यवाद करती हैं और फिर वह नदी से बाहर निकल कर जाने ही वाली होती है कि तभी वीर सिंह उसका हाथ पकड़के उसे अपनी और घुमाकर उसे अपने समीप ले आता है, वीरांगना को एक क्षण भी नहीं लगते वीर सिंह को पहचानने में। वीर सिंह को देखते ही वीरांगना का मुंख पीला पड़ने लगता है, और उसकी श्वास ऊपर ही अटक जाती है और वह भय के कारण उससे अपना हाथ छुड़ाने की चेष्टा करती है

Veerangna -A Beautiful Love storyWhere stories live. Discover now