Part 7

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वह जल्द से जल्द फिर से उसकी बाहों में झूलना चाहती थी। अशोक से मिले दस दिन हो गए थे। उस सुनहरे दिन के बाद से वे मिले नहीं थे। अशोक को किसी काम से कानपुर जाना पड़ गया था। पर वह कल दफ्तर आने वाला था।
कामिनी सोच नहीं पा रही थी कि अब दफ्तर में वह अशोक से किस तरह बात करेगी या फिर अशोक उस से किस तरह पेश आएगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि आम आदमियों की तरह वह उसकी अवहेलना करने लगेगा। कई मर्द जब किसी लड़की की अस्मत पा लेते हैं तो उसमें से उनकी रुचि हट जाती है और कुछ तो उसे नीचा समझने लगते हैं….। कामिनी कुछ असमंजस में थी….।
लालसा, वासना, डर, आशंका, ख़ुशी और उत्सुकता का एक अजीब मिश्रण उसके मन में हिंडोले ले रहा था। कामिनी ने सुबह जल्दी उठ कर विशेष रूप से उबटन लगा कर देर तक स्नान किया। भूरे रंग की सेक्सी पैंटी और ब्रा पहनी जिसे पहन कर ऐसा लगता था मानो वह नंगी है।
उसके ऊपर हलके बैंगनी रंग की चोली के साथ पीले रंग की शिफोन की साड़ी पहन कर वह बहुत सुन्दर लग रही थी। बालों में चमेली का गजरा तथा आँखों में हल्का सा सुरमा। चूड़ियाँ, गले का हार, कानों में बालियाँ और अंगूठियाँ पहन कर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रही हो।
कामिनी मानो दफ्तर भूल कर अपनी सुहाग रात की तैयारी कर रही थी। सज धज कर जब उसने अपने आप को शीशे में देखा तो खुद ही शरमा गई। उसके पति ने जब उसे देखा तो पूछ उठा- कहाँ कि तैयारी है …?

कामिनी ने बताया कि आज दफ्तर में ग्रुप फोटो का कार्यक्रम है इसलिए सब को तैयार हो कर आना है !!
रोज़ की तरह उसका पति उसे मोटर साइकिल पर दफ्तर तक छोड़ कर अपने काम पर चला गया। कामिनी ने चलते वक़्त उसे कह दिया हो सकता है आज उसे दफ्टर में देर हो जाये क्योंकि ग्रुप फोटो के बाद चाय-पानी का कार्यक्रम भी है।

दफ्तर १० बजे शुरू होता था पर कामिनी ९.३० बजे पहुँच जाती थी क्योंकि उसे छोड़ने के बाद उसके पति को अपने दफ्तर भी जाना होता था। कामिनी ने ख़ास तौर से अशोक का कमरा ठीक किया और पिछले १० दिनों की तमाम रिपोर्ट्स और फाइल करीने से लगा कर अशोक की मेज़ पर रख दी।
कुछ देर में दफ्तर के बाकी लोग आने शुरू हो गए। सबने कामिनी की ड्रेस की तारीफ़ की और पूछने लगे कि आज कोई ख़ास बात है क्या?
कामिनी ने कहा कि अभी उसे नहीं मालूम पर हो सकता है आज का दिन उसके लिए नए द्वार खोल सकता है !!!
लोगों को इस व्यंग्य का मतलब समझ नहीं आ सकता था !! वह मन ही मन मुस्कराई…. ठीक दस बजे अशोक दफ्तर में दाखिल हुआ। सबने उसका अभिनन्दन किया और अशोक ने सबके साथ हाथ मिलाया। जब कामिनी अशोक के ऑफिस में उस से अकेले में मिली अशोक ने ऐसे बर्ताव किया जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही न हो।
वह नहीं चाहता था कि दफ्तर के किसी भी कर्मचारी को उन पर कोई शक हो। कामिनी को उसने दफ्तर के बाद रुकने के लिए कह दिया जिस से उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। किसी तरह शाम के ५ बजे और सभी लोग अशोक के जाने का इंतजार करने लगे।
अशोक बिना वक़्त गँवाए दफ्तर से घर की ओर निकल पड़ा। शीघ्र ही बाकी लोग भी निकल गए। कामिनी यह कह कर रुक गई कि उसे एक ज़रूरी फैक्स का इंतजार है। उसके बाद वह दफ्तर को ताला भी लगा देगी और चली जायेगी। उसने चौकीदार को भी छुट्टी दे दी। जब मैदान साफ़ हो गया तो कामिनी ने अशोक को मोबाइल पर खबर दे दी।

करीब आधे घंटे बाद अशोक दोबारा ऑफिस आ गया और अन्दर से दरवाज़ा बंद करके दफ्टर की सभी लाइट, पंखे व एसी बंद कर दिए। सिर्फ अन्दर के गेस्ट रूम की एक लाइट तथा एसी चालू रखा। अब उसने कामिनी को अपनी ओर खींच कर जोर से अपने आलिंगन में ले लिया और वे बहुत देर तक एक दूसरे के साथ जकड़े रहे।
सिर्फ उनके होंठ आपस में हरकत कर रहे थे और उनकी जीभ एक दूसरे के मुँह की गहराई नाप रही थी। थोड़ी देर में अशोक ने पकड़ ढीली की तो दोनों अलग हुए। घड़ी में ५.३० बज रहे थे। समय कम बचा था इसलिए अशोक ने अपने कपड़े उतारने शुरू किये पर कामिनी ने उसे रोक कर खुद उसके कपड़े उतारने लगी।

अशोक को निर्वस्त्र कर उसने उसके लिंग को झुक कर पुच्ची की और खड़ी हो गई। अब अशोक ने उसे नंगा किया और एक बार फिर दोनों आलिंगन बद्ध हो गए। इस बार अशोक का लिंग कामिनी की नाभि को टटोल रहा था।
कामिनी ने अपने पंजों पर खड़े हो कर किसी तरह लिंग को अपनी योनि की तरफ किया और अपनी टांगें थोड़ी चौड़ी कर लीं। अशोक का लिंग अब कामिनी की चूत के दरवाज़े पर था और कामिनी उसकी तरफ आशा भरी नज़रों से देख रही थी।
अशोक ने एक ऊपर की तरफ धक्का लगाया और उसका लंड चूत में थोड़ा सा चला गया। अब उसने कामिनी को चूतड़ से पकड़ कर ऊपर उठा लिया और कामिनी ने अपने हाथ अशोक की गर्दन के इर्द-गिर्द कर लिए तथा उसकी टांगें उसकी कमर से लिपट गईं।
अब वह अधर थी और अशोक खड़ा हो कर उसे अपने लंड पर उतारने की कोशिश कर रहा था।

थोड़ी देर में लंड पूरा कामिनी की चूत में घुस गया या यों कहिये कि चूत उसके लंड पर पूरी उतर गई। कामिनी ने ऊपर नीचे हो कर अपने आप को चुदवाना शुरू किया।

उसे बड़ा मज़ा आ रहा था क्योंकि ऐसा आसन उसने पहली बार ग्रहण किया था। कुछ देर के बाद अशोक ने बिना लंड बाहर निकाले कामिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके ऊपर लेट कर उसको जोर जोर से चोदने लगा। हालाँकि अशोक आज कामिनी की गांड मारने के इरादे से आया था पर काम और क्रोध पर किसका जोर चलता है !!
अशोक २-३ मिनटों में ही बेहाल हो गया और उसकी पिचकारी कामिनी की योनि में छूट गई। अशोक की यही एक कमजोरी थी कि पहली बार उसका काम बहुत जल्दी तमाम हो जाता था। पर दूसरी और तीसरी बार जब वह सम्भोग करता था तो काफी देर तक डटा रह सकता था।

कामसुख(Completed)Where stories live. Discover now