इक लाज रोके पैयां, इक मोह खींचें बैयां...🌺

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भाग - ४७(Chapter -47 🌺 Ek Laaj Roke Paiyaan,Ek Moh Kheenche Baiyaan ...🌺 My shyness makes my steps halt,at the same time the yearning,the urge to meet my beloved pulls my hand....🌺

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नस नस में वो..

बस..

बस में नहीं है

NAS NAS MEIN VO..

BASS..

BASS MEIN NAHIN HAI..

[*HE IS EVERYWHERE..

BUT..

BUT NOT IN MY CONTROL AS HE IS Controlling EVERY EMOTION,EVERY BREATH THAT I INHALE..SUCH IS HIS HOLD..]

इतने में ही एक सहायिका ने हमें इनके आने की सूचना दी..और हमनें अपनी किताब को एक तरफ़ रखा ही था कि..

And a help informed me about his arrival.. and just when I put my book on the side, right at that moment..

प्रिया ..

Priya..

और हम नहीं जानते कि क्यों अपने नाम को सुनकर हमारे मुख पर ये प्रसन्नता छा गई.. अपने ही नाम से मोह करवा दिया है इन्होंने (राम)

And I do not know why the mere mention of my name ,made me smile sweetly...He/Ram has managed to enchant me ,using my name as a spell..

क्या कर रही हो यार...?

और ये हमारे पास आकर लेट गए.... चेहरे पर दिनभर की थकन साफ़ दिखती थीं, आँखें बंद पर वही शरारत से भरीं...अपने एक हाथ के ऊपर शरीर का भार छोड़,इन्होंने हमारे ओर जो देखा...एक क्षण को हमें हमारी मां के कक्ष का वो चित्र स्मरण हो आया ,जहां इसी प्रकार से श्रीहरि नारायण विराजमान थें, योगनिद्रा की मुद्रा में और लक्ष्मी जी के साथ संसार के प्रकरण पे चर्चा करते...हम नारायण (यहां राम ) की बंद आंखों को अभी देख ही रहें थें कि यकायक उन्होंने अपने नेत्र खोलें और उन कुछ नीले,कुछ हरे से नेत्रों में हमें समस्त संसार समाया हुआ दिखा...और हरि (राम) मुस्कुराए,और उन्हें यूं स्वयं को निहारते देख,आदिलक्ष्मी भी कमल सी खिल उठीं...और हो भी क्यों न , संसार के कार्य करते करते स्वामी (विष्णु जी और राम) अपनी पत्नी की सुध ना लेते..और लक्ष्मी जी सारा समय उनके निकट इस क्षण की प्रतीक्षा में रहती कि कब अपनी योगनिद्रा तोड़,प्रभु उनकी ओर भी देखेंगे... जगतमाता होकर भी उनकी समस्या भी किसी अन्य पत्नी की ही तरह हैं, संसार की ठोर ना सही ,बस प्रियवर की प्रेम भरी दृष्टि को आकुल रहतीं देवी

छाप तिलक सब छीनी रे....Where stories live. Discover now