सफरनामा

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आज फिर से एक सफर पर निकले हैं,
कुछ अनकही दास्तां लिखने हैं।
ट्रेन का ये सफर है,
उत्तर प्रदेश का ये मुजफ्फरनगर है।
ये रास्ता न जाने कहां ले जाए,
इस पल को जीले,
न जाने, वापिस आए न आए।
ट्रेन का ये सफर है,
इस नई कहानी का आज पहला ज़िक्र है।
ये खिल – खिलाती हसीं और मज़ाक,
सफर के यादगार लम्हें हैं।
ट्रेन का ये सफर है,
रास्तों में बच्चों की खिल – खिलाट है।

ओह! , सफरनामा,
तेरा क्या ही कहना है,
हस्ते हुए आए थे,
हस्ते हुए ही जाना है।

By - Siddhi Maheshwari

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