अगले दिन जब अनामिका लंगड़ाते हुए घर आयी तो देखते ही उसकी माँ उसकी मरहम पट्टी करने दौड़ पड़ीं. अनामिका के आँसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.
"कुछ तो बोलो बेटा, हुआ क्या?" अनामिका की माँ के स्वर में घबराहट थी.
"मम्मी वो," अनामिका सिसकते हुए बोली, "क्लास के स्टूडेंट्स ने जिन सीढ़ियों से हमें गुज़रना था वहां हमें गिराने के लिए तेल डाल दिया था. हमने देखा नहीं और सीढ़ी से गिर गयी."
"तुमने डीन सर को बताया ये?"
"डीन सर को क्या ही बताएँ मम्मी," अनामिका और ज़ोर से रोने लगी, "आज सुबह उन्होंने हमें ऑफिस बुलाया और बोले कि हमारे सब्जेक्ट में स्टूडेंट्स की परफॉरमेंस बिल्कुल अच्छी नहीं है. अगर इम्प्रूवमेंट नहीं हुआ तो हमें नौकरी से निकाल देंगे. हमने कहा भी कि जो सब्जेक्ट हम पढ़ाते हैं वो पूरे कंप्यूटर इंजीनियरिंग के चार सालों के कोर्स में सबसे कठिन सब्जेक्ट है और हमारी कोशिश यही रहती है कि क्लास के सबसे कमज़ोर स्टूडेंट की भी बैक न लगे. तो बोलने लगे की हमें वीक स्टूडेंट्स या उनके बैक आने के डर से ये नहीं भूलना चाहिए कि हर साल हर सब्जेक्ट में यूनिवर्सिटी टोपर हमारे कॉलेज से ही होता है और हमें कमज़ोर स्टूडेंट्स पर नहीं टॉपर्स पर फोकस करना चाहिए. बताओ मम्मी कोई टॉप न कर पाए तो फिर भी चलेगा मगर बैक आ जाने से तो पूरा साल खराब होने के चांसेस हैं."
"बेटा, देखो रो मत," माँ ने अनामिका के आँसू पोंछते हुए कहा, "हालातों से कभी डरना नहीं चाहिए. जैसा तुम्हारे डीन कह रहे हैं वही करो. वो स्टूडेंट्स भी कौन सा तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार कर रहे हैं. तुम बस अपना ध्यान रखो दुनिया भर की मुसीबत अपने सर लेने की ज़रुरत नहीं है. ठीक है?
अनामिका ने हाँ में सर हिला तो दिया पर वो जानती थी कि अपने लेक्चरर रहते किसी स्टूडेंट की बैक तो वो आने नहीं देगी. कॉलेज से हर साल यूनिवर्सिटी टॉपर होने का रिकॉर्ड जाये भाड़ में. अब खुद को एक दिन में बदलना आसान तो है नहीं , और अनामिका के लिए तो बिल्कुल भी नहीं. अगर आपकी आत्मा ही आपका साथ न दे तो दुनिया भर की शाबासी का भी क्या करना? जैसे ही माँ से मरहम लगवाकर अनामिका कमरे में गयी फ़ोन ऐसे घनघनाने लगे मान लो दिन भर से उसके इंतज़ार में ही बैठा हो.
"हैलो अनामिका."
"हाँ, बोलो पार्थ."
"तुम रो रही हो क्या?"
अनामिका कुछ नहीं बोली.
पार्थ कुछ मिनटों इंतज़ार के बोला, "देखो वैसे तो तुमसे बात करने का टेलीफोन बिल कभी आता नहीं है पता नहीं कैसे, मगर रात भर अगर यूं हम बिना बात किये बैठे रहे, तो तुम्हारा तो पता नहीं, मगर कल हमें क्लास में बहुत नींद आएगी फिर प्रोफेसर हमारा क्या हाल करेंगे तुम जानती ही हो."
ये सुनते ही अनामिका की रुलाई फिर छूट गयी और एक सांस में उसने पूरी बात पार्थ को बता दी.
"बहुत दर्द हो रहा है?" अनामिका की बात ख़त्म होते ही पार्थ ने लगभग फुसफुसाते हुए पूछा. अनामिका ने हाँ में ऐसे सर हिलाया मनो पार्थ उसके सामने ही हो.
"रुको, हम अभी दवाई लाते हैं ," पार्थ बोला, "अनामिका ज़रा चप्पल उतारना और अपने पैजामे का सिरा एड़ी से थोड़ा ऊपर उठाना."
अनामिका की कुछ समझ में नहीं आया, फिर भी जैसा पार्थ ने कहा उसने वैसा ही किया.
"तो अब हम तुम्हारी एड़ी पर डेटॉल रुई से लगा रहे हैं. देखो अगर छरछराये तो बता देना हमें?"
"हम्म..."
"हूँ मतलब क्या?"
"थोड़ा छरछरा रहा है," अनामिका ने एक मुस्कान के साथ कहा.
तभी फ़ोन के दूसरे तरफ से एक किस जैसी आवाज़ आयी, "देखो, अब तो हमने तुम्हारी एड़ी की चोट को चूम भी लिया है. बोलो अब भी छरछरा रहा है?"
"नहीं," कहते ही अनामिका खिलखिला उठी.
"बदमाश लड़की," पार्थ ने प्यार से अनामिका को डांटते हुए कहा, "वैसे हमने ये बताने के लिए फ़ोन किया था की कल छुट्टियों में हम बनारस आ रहा हैं. दशाश्वमेघ घाट पर कल शाम छह बजे तुम हमसे मिलोगी?"
और अनामिका के आँसुओं का बाँध फिर टूट गया था.
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