रिमझिम गिरे सावन

101 14 24
                                    

रिमझिम बरसते हुए बदरा और मसाला चाय...जब प्रकृति ही ऐसा संयोग बनाये तो सौ साल पुराना प्रेत भी रोमांटिक होकर गाने लगे- रिमझिम गिरे सावन🎵🎵🎵

सावन का महीना शुरू हो चुका है और आरम्भ हो चुका है शिवजी का सबसे प्रिय भक्ति और प्रेम का उत्सव. तो आज की कहानी है शिवजी की नगरी से बारिश की सोंधी खुशबू लिए ...

कोई ये नहीं कह सकता कि काशी के घाट पर होने वाली गंगा आरती में सबसे ज़्यादा उसे क्या भाता है -अंधकार की दीवारों को भेदती आरती की जोत, संसार के हर संगीत को अपने में समाये घंटों की ध्वनि या माँ गंगा के आँचल में ज़री-गोटे से टंके हुए दीये. मगर अगर कोई यही सवाल अनामिका से पूछता तो वो बिना अपने बालों की लट को कानों के पीछे चश्मे से दबाकर कहती- उसे गंगा आरती में सबसे ज़्यादा एकांत पसंद है. देशी-विदेशी पर्यटकों और काशी के निवासियों की भीड़ में भी गंगा आरती में अनामिका को वो एकांत मिलता था जिसमें उसकी आवाज़ बिना किसी शोर के भोले बाबा और माँ गंगा सुन सकती थीं.

यूँ तो अनामिका के पास ज़्यादा कुछ कहने को था नहीं- एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज की लेक्चरर थी वो जिसके मन की घड़ी का काँटा में Delena-Stelena शिप के ज़माने में भी धर्मवीर भारतीजी के उपन्यास के आदर्शवादी चंदर पर अटका हुआ था. अपने स्कूल- कॉलेज की दोस्तों की तरह नोएडा-बंगलौर में नौकरी करने की जगह अपने मम्मी पापा के घर में रहना के उसके निर्णय को अक्सर उसके दोस्त और रिश्तेदार उसके लोगों के बीच न घुलने मिलने और बोल्ड न होने का साइड इफ़ेक्ट कहते थे और ऐसा भी नहीं था कि उनका कहना गलत था. मगर अनामिका सिर्फ किसी को कुछ साबित करने के लिए कुछ नहीं करना चाहती थी. और जब तक किसी चीज़ को वो पूरे मन से ना चाहे, तो क्या उसके लिए हाथ पैर मारना.

"घर आ गयीं, बेटा?" अनामिका के घर लौटते ही माँ ने गरमागरम खाना उसके आगे परोस दिया, "क्लासेज कैसी रहीं आज तुम्हारी?"

"कुछ नहीं, स्टूडेंट्स नाम से पुकारते हैं हम लेक्चरर्स को," अनामिका रोटी का कौर हाथ में लिए हुए बोली, "हमारे ज़माने में तो हम लोगों की आवाज़ नहीं निकलती थी टीचर्स के सामने..."

माँ ने हँसते हुए कहा, "तुम्हारा ज़माना? अब कौन सी बूढी हो गयी हो तुम..."

"28 की हैं माँ अब हम, अब कुछ नया नहीं होगा हमारी लाइफ में."

"अच्छा बेटा, आज निर्मला आंटी के बेटे की शादी है. तो हम और पापा वहां जा रहे हैं. तुम ध्यान से रहना और हमारे अलावा किसी को दरवाज़ा मत खोलना."

अनामिका ने हाँ में सर हिलाया.

दरवाज़ा लॉक करने के बाद वो यूट्यूब पर पुराने गानों के कवर वरज़न देख ही रही थी कि उसके कमरे में रखे लैंडलाइन की घंटी बजी. उसके कमरे में रखा हरे रंग का लैंडलाइन वैसे तो सालों से खराब पड़ा था पर आज न जाने क्यों अनामिका के देखते ही देखते मुर्दा ज़िंदा हो गया.

"हेलो?" अनामिका ने कुछ पल चुप रहने के बाद कहा.

दूसरी तरफ से आवाज़ आयी, "हम शादी करेंगे तो सुधी जैसी लड़की से ही करेंगे. एक मिनट, तुम तो हमारी माँ नहीं हो?"

"लगता है आपका रॉन्ग नंबर लग गया है." अनामिका बोली. आवाज़ से तो वो कोई लफंगा लग नहीं रहा था. उसकी आवाज़ काले मेघों जैसी थी, गहरी और मादक.

"वही हम vahi soch rahe the ki हमारी माँ को उम्र घटाने वाली कोई अमरीकी दवा मिल गयी क्या. वैसे तुम्हारा क्या ख़याल है सुधा के बारे में?"

या फिर अनामिका कोई सपना देख रही थी या फिर उसका पल्ला किसी पागल से पड़ गया था, "अब हम कैसे बतायें? हम to जानते भी नहीं सुधा कौन है? वैसे सुधा जैसी लड़की से शादी क्यों करनी है आपको? सुधा से ही कर लीजिये न आप शादी. वैसे आप बोल कौन रहे हैं?"

"अरे सुधा तो मर चुकी है न. अच्छा हाँ, एक दूसरे का नाम तो हमने पूछा ही नहीं, हमारा नाम पार्थ है वैसे."

"सुधा मर चुकी है? I'm सो सॉरी."

"अरे मुझे सॉरी क्यों बोल रही हो? कौन सा हम चंदर हैं?"

"चंदर? एक मिनट,..."

"देखो अब ये मत कहना कि तुम चंदर को भी नहीं जानती? कौन सी दुनिया में रहती हो तुम, वैसे नाम क्या है तुम्हारा?"

"अनामिका ."

"हाँ तो अनामिका जी कौन सी दुनिया में रहती हैं आप जो आप गुनाहों का देवता के बारे में नहीं जानती. अच्छा , वार्डन दादा, भयानक भयानक शक्लें बना रहे हैं तो फ़ोन रखते हैं हम वरना फ़ोन का सारा बिल माँ बाबूजी को बनारस में by पोस्ट भेज देंगे ये. कल फिर फुर्सत से बात करेंगे जब वॉर्डन दादा आस पास नहीं होंगे."

To kaisa laga first chapter aapko? Should I continue this?

कुछ किस्से...कुछ यादें Where stories live. Discover now