Chapter-7

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मंजरी की जिंदगी अत्यंत दुष्कर होती जा रही थी। उधर जादूगर की तबीयत दिन पर दिन खराब रहने लगी।इधर सेठ जी भी बीमार,और उसका भरपूर फायदा उठाने की कोशिश कर रहा था सेठ का लड़का। निहायत आवारा किस्म की हरकतें करने की कोशिश करता। इधर घर का राशन पानी जब भी खत्म होता। मंजरी को सेठ की दुकान तक जाना ही पड़ता और उधर उधार के झंझट से निपटने का कोई सरल तरीका भी न था। मंजरी भी थक चुकी थी। कभी-कभी तो खून का घूंट पीकर रह जाती ऐसा और कितने दिन चलने वाला था। कोई नहीं जानता था। अच्छे दिन आने की प्रत्याशा में थोड़ा बहुत तो सहन कर लेती। किंतु वह ऊब चुकी थी।उसने एक दिन जादूगर से कहा कि अब अधिक दिन ऐसे जिंदा नहीं रहा जा सकता। हुनर बेचा है,इज्जत नहीं। जादूगर की भी कुछ कुछ समझ में आ रहा था। जादूगर भी क्या करता, बस मंजरी को अच्छे दिन आने की सांत्वना देता रहता। धीरे-धीरे ऐसे ही दो महीने बीत चुके थे। अब दवा ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। जादूगर फिर से स्वस्थ दिखाई देने लगा। किंतु फिर भी चिकित्सक द्वारा उसे आराम की सलाह दी गई थी। अभी दस-पन्द्रह दिन और विश्राम की आवश्यकता थी। यह दिन मंजरी के लिए पहाड़ की तरह थे। बाकी सब तो ठीक था। पेट भर खाना अगर नहीं मिल रहा था। उसकी कोई गिला नहीं थी और न ही कोई शिकवा।भूखा रहना अच्छा था। किंतु वह सेठ जी के लड़के की बदतमीजी की हद को अब और नहीं सह सकती थी। उसने दूसरा रास्ता ढूंढा उसने एक अन्य दुकानदार को अपने विश्वास में लिया और उससे सामान खरीदना शुरू किया इसी तरह यह कष्ट के दिन भी बीत गए। एक दिन जादूगर ने निश्चय किया कि आज वह अपना जादू का खेल दिखाने शहर जाएगा। मंजरी तैयार थी। शायद आज ही वह स्वर्णिम दिन था। जन्मों के प्रेमी एक दूसरे से मिलने वाले थे। किंतु यह मिलन अभी एक तरफा ही था।वह भी मानस की तरफ से। मंजरी अनभिज्ञ थी उसकी उपस्थिति से। जैसे ही खेल शुरू हुआ, भीड़ लग चुकी थी।बहुत दिनों बाद जादूगर का खेल देखने मिल रहा था।सभी खुश थे। मंजरी ने आज अपना कुछ अलग ही श्रंगार किया था। श्रंगार की सामग्री भी सुंदर फूलों से तैयार की गई थी।फूलों की महक दूर दूर तक पहुंच रही थी। मंजरी शायद एक ऐसा फूल थी। जो कांटो में खिला था, और केवल जी रहा था अपना पेट भरने के लिए। संसार के सारे सुख-भोगों से कोसों दूर उसके सौंदर्य को देखने के लिए अब कुछ ज्यादा ही भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। इतर थी वह सामान्य लड़कियों से।सौंदर्य की परिभाषा जैसे मंजरी के सौंदर्य से ही तय होती थी। किंतु मंजरी के कष्ट जो उसके दिल में छिपे हुए थे। जो वह हर रोज झेलती थी, से यह समाज अनभिज्ञ था।उनके लिए तो वह एक मनोरंजन का साधन मात्र थी। मंजरी की आजीविका अब मंजरी के लिए कष्टकारी बन गई थी। न जाने कितने भंवरे इस सुंदर फूल के लिए जादू का खेल देखने मंडराया  करते।अब जादूगर भी बहुत सतर्क रहने लगा था। मंजरी को लेकर चिंतित भी रहता। वह नहीं चाहता था कि मंजरी उसके साथ खेल दिखाने में हिस्सेदारी करें। इन सारी चिंताओं की जड़ थी मंजरी की युवावस्था। मानस शहर आया हुआ था। विशेष कार्य के लिए। जो उसकी मां ने उसको सौंपा था। मानस भी एक हष्ट पुष्ट नवयुवक बन चुका था,बलशाली भी।सिद्धा माई नहीं चाहती थी कि मानस को कोई पहचाने। वह आज शहर आया था। लेकिन वेशभूषा बदलकर।पहचान गोपनीय रखने के पीछे माई का क्या उद्देश्य था। यह तो माई ही जानती थी। मानस भी अनभिज्ञ था।सब समय के गर्त में छिपा था। जादू का खेल आज से पहले उसने कभी नहीं देखा था। देखने के लिए रुक गया खेल से ज्यादा उसे मंजरी में रुचि थी। धीरे-धीरे खेल समाप्ति की ओर था। मानस मंजरी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करवाना चाहता था। किंतु विफल रहा। खेल की समाप्ति पर मंजरी ने सामान एकत्र किया।  मंजरी और जादूगर दोनों चल दिए वापस अपने ठिकाने की ओर।और उनके पीछे चल दिया मानस। ऐसा लग रहा था कि कोई उसको खींच रहा था। या तो यह था मंजरी का सौंदर्य या उसके यौवन का जादू  या पूर्वजन्म का कोई रिश्ता।
आगे क्या होता है जानने के लिए पढ़िए मानस मंजरी प्रेम कथा का अगला अंक.........
प्रेम कथा का वास्तविक रूप अगले अंक से आपके समक्ष परिलक्षित होगा।अभी तक हमने मानस-मंजरी का बचपन जाना और उनके युवा होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। अब शुरू होता है, उनके प्रेम का अंकुरण..... उनका प्रथम मिलन
बस प्रतीक्षा कीजिए अगले अंक की बेसब्री के साथ.....#dranjulasharma

मानस मंजरी एक प्रेम कथाWhere stories live. Discover now