Chapter-5

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मानसी एक अद्भुत, विचित्र,स्वाभिमानी और अप्रतिम सौंदर्य से धनी नवयौवना। मानसी एक ऐसा व्यक्तित्व बन चुकी थी, कि उसकी उपस्थिति मात्र से ही एक भिन्न अनुभूति इर्द-गिर्द उपस्थित लोगों के मन में होने लगती। उसके सौंदर्य को लेकर और उससे भी ज्यादा उसकी जादुई शक्तियों को लेकर ।मानसी निखर रही थी, दिन पर दिन। यह निखार आ रहा था, तरुणाई के साथ-साथ उसकी सुंदरता में और जादुई शक्तियों के इस्तेमाल में। मानसी के चेहरे पर सुंदरता के साथ आत्मविश्वास की दमक भी झलकने लगी थी। वह इतनी सुंदर थी कि बहुत से लोग अपने मन में उसके तन से ईर्ष्या करने लगे थे।मानसी हाथ की सफाई में महारत हासिल कर चुकी थी। जादूगर के साथ उसके पेशे में पूर्ण योगदान भी देने लगी थी। जादूगर भी अब बूढ़ा हो चला था। पेट की रोटी के लिए खेल दिखाना तो जिंदगी का हिस्सा बन ही चुका था किंतु उम्र के साथ अब वह कभी इतना बीमार हो जाता कि एक-एक हफ्ते उसे अपना खेल बंद करना पड़ता और ऊपर से दवाई का खर्चा अलग, सारा काम मंजरी के जिम्में आने लगा। मंजरी भी घर का पूरा काम संभालती फिर उसकी कोशिश रहती के वह जादू के खेल के छोटे-मोटे आयोजन खुद कर सके,किंतु यह इतना आसान नहीं था। उसे जरूरत थी किसी साथी की या मददगार की। बाकी तो सच यह था कि उसका साथ देने सहज कोई तैयार नहीं होता था।सब उसे काले जादू की जानकार समझ कर पास भी न फटकते थे, किंतु सच क्या था, यह तो जादूगर भी न जानता था।शहर में शायद ही कोई ऐसा था,जो उस जादूगर और मंजरी से परिचित न हो।मंजरी की उम्र लगभग सोलह बसंत पार कर चुकी थी। मंजरी एक पूर्ण नव युवती के रूप में विकसित हो चुकी थी। मंजरी के दो मोहल्ले बाद एक सेठ की दुकान थी। जहां से मंजरी और जादूगर अपना राशन पानी लेकर आते।सेठ जी कभी उधर भी दे दिया करते। किंतु अब सेठ जी भी सोचने लगे थे, कि जादूगर कहां तक उधार चुकता करेगा। क्योंकि उसकी बीमारी की जानकारी सेठ को भी पूरी-पूरी थी। फिर भी दया कर  दे दिया करते। सामान भी और कभी-कभी पैसे भी। एक दिन जादूगर की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी।वह मंजरी को दवा और कुछ दाल -चावल लाने के लिए कहने लगा।मंजरी ने घर का काम निपटाया और निकल पड़ी बाजार की ओर। रास्ते भर यह सोचती रही कि काश जादू से रूपए पैसे भी बन जाते। और यही सोचते-सोचते कब सेठ की दुकान आ गई। उसको पता भी न चला।जैसे ही उसने दुकान पर देखा कि आज सेठ की जगह एक नवयुवक उस स्थान पर बैठा था,जहां अक्सर जब आती सेठ जी बैठे मिलते। उसने उस नवयुवक से सेठ जी के बारे में पूछा। नवयुवक ने बताया, कि आज सेठ जी दूसरे शहर गए हुए हैं। दुकान के लिए कुछ थोक का सामान खरीदने। किंतु मंजरी ने देखा वह नवयुवक बताने से ज्यादा उसको देखने में रुचि रख रहा था। मंजरी ने उसे सामान दिखाया और दवा लेने चली गई।अगली दुकान पर उसे यह बोल कर कि जब तक वह दवा लेकर आती है, वह सामान तोल कर रखे। उसके पास इतने पैसे तो थे कि वह दवा खरीद कर ले आई, किंतु अब दुकान पर सेठ जी तो थे नहीं, वह क्या करती उसने उस नवयुवक से कहा कि उसके पास पैसे तो है नहीं, वह बही-खाते में उसके नाम पैसा चढ़ा दे।नवयुवक बोला कि मैं तुम्हें जानता नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। अब मंजरी के सामने एक अत्यंत कठिन समस्या थी।कैसे सामान छोड़कर जाए और कैसे वह पैसे की जुगाड़ करें,क्योंकि उसे पता था यदि वह आज राशन नहीं ले जाती है,तो घर में शाम की दाल रोटी की कोई व्यवस्था ना हो सकेगी।उसने लड़के से अनुनय विनय की..... लड़का भी कुछ  "शातिर किस्म का था"। वह ललचाई दृष्टि से मंजरी को ताक रहा था और पूरी कोशिश में था की मंजरी की कमजोरी का फायदा उठा सके।
आगे क्या होता है ......जानने के लिए पढ़िए ........मानस मंजरी प्रेम कथा का अगला अंक
अन्जुला#dranjulasharma

मानस मंजरी एक प्रेम कथाWhere stories live. Discover now