कभी घर में बंद रहते थे
कभी रास्तों पे टहलते थे
आज जब छत पे चढ़े तो जाना
वो पंछी थे जो चेहकते थे
YOU ARE READING
क्योंकि हिन्दी में कुछ बात है...
Poetryमेरी और मेरे दोस्तों ने लिखी हुई कुछ हिन्दी पंक्तियाँ
161
कभी घर में बंद रहते थे
कभी रास्तों पे टहलते थे
आज जब छत पे चढ़े तो जाना
वो पंछी थे जो चेहकते थे