डूब रही है यह शाम
कही चिखती लहरों के तले
तो कही ऊंचे पर्वतों के परेडूब रही है यह शाम
कही चिड़ियों के कलरव मे बहती
तो कही शहरों के शोर मे रहतीहा, डूब रही है यह शाम
अधूरे निले आसमान को छोड़
आग के रंगो मे रंग रही है शामहा, डूब रही है यह शाम...
आप पढ़ रहे हैं
क्योंकि हिन्दी में कुछ बात है...
Poetryमेरी और मेरे दोस्तों ने लिखी हुई कुछ हिन्दी पंक्तियाँ