Chapter 13 - Chandra (part 1)

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Hello Guys,😃
Finally I'm back with another fragrance of 'Unknown love'.💕 Accept my apology for keep you waiting for so long..
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सोमवार,
शाम 7 : 30 बजे ।
आज पलक को वापस लौटने में देर हो गई थी । और मैं इस बात से काफ़ी परेशान था । मैं हर समय उसका पीछा नहीं करना चाहता था । लेकिन अब गुजरते पलों के साथ उसके वापस लौटने तक मेरा यहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था । तभी अचानक उसी समय मैंने पलक के आने की आहट सुनी और उसके पीछे उसके कमरे तक जा पहुँचा ।
पलक बिल्कुल मेरे सामने सोफा पर अपनी आंखें मीचे बैठी थी । वही उसके खूबसूरत चेहरे पर मुझे उसकी थकान साफ़ दिखाई दे रही थी ।
पलक के सामने जाते ही "तुम आज लेट कैसे हो गई ?" परेशानी में मैं ख़ुदको ये सवाल करने से नहीं रोक पाया । और मेरी बात सुनते ही पलक हैरानी भरी नज़रों से मेरी तरफ़ देखने लगी ।
उसे हैरान देखकर, "म..माफ़ करना मुझे ये सवाल करने का कोई हक़ नहीं । तुम.. आराम करो, मैं.. चलता हूं ।" अगले ही पल मुझे अपनी भूल का एहसास होते ही मैं पीछे हट गया ।
तब, "नहीं," उसकी आवाज़ ने मुझे रोक दिया, "ऐसी कोई बात नहीं ।" और उसकी बात सुनते ही मैंने पीछे मुड़कर उसकी तरफ़ देखा ।
"मुझे पता है तुम्हे बस मेरी फ़िक्र हो रही थी ।" पलक ने उलझन भरी मुस्कुराहट के साथ धीरे से कहा ।
"असल में सलोनी मुझे अपने साथ रेस्टोरंट ले गई थी । मेरा आर्टि... मेरा मतलब हमारा आर्टिकल सबको बहुत पसंद आया । और इसी खुशी को वो सेलब्रेट करना चाहती थी ।" उसने हिचकिचाहट भरी मुस्कुराहट के साथ कहा ।
शायद पलक मेरी बेचैनी वजह समझ चुकी थी । और वो सही थी । मुझे उसकी फिक्र होने लगी थी ।
"कोई बात नहीं । तुम्हे मुझे हर चीज़ के बारें में स्टेटमेंट देने की ज़रुरत नहीं । तुम आराम करो हम बाद में बात करेंगे ।" मैंने उसकी तरफ देखकर हल्की - सी मुस्कुराहट के साथ कहा ।
आज काफ़ी समय के बाद पलक को कोई खुशी मिली थी और वो पहली बार अकेले रहने की बजाय अपनी दोस्त के साथ थी । उसे पहली बार लोगों से मिलता देख मुझे अच्छा लग रहा था मगर वो काफ़ी थक चुकी थी । उसे आराम की ज़रूरत थी । इसलिए मेरा यहां से जाना ही ठीक था ।
रात 9 : 00 बजे ।
उस समय मैंने पलक को हॉल में बैठे देखा । वो वहीं मेरे आगे सोफा पर बैठकर टेलीविजन देख रही थी ।
मैं वहीं थोड़ी दूरी पर उसके पीछे था । उसके सोने से पहले मैं बस पलक को देखने आया था और देखता ही रह गया । मुझे ये देखकर अच्छा लग रहा था कि पलक अब अपने खाली और अकेलेपन को भूलकर एक साधारण ज़िंदगी जीने की कोशिश कर रही थी ।
"तो तुम यही हो !" पलक ने पीछे मेरी तरफ़ देखकर धीरे से कहा ।
उसकी आवाज़ सुनते ही, "हाँ ।" मेरी हैरानी भरी नज़रे उसकी ओर उठ गई ।
मैं हैरान था कि मेरे बिल्कुल शांत रहने के बावजूद पलक ने मेरी मौजूदगी का पता लगा लिया था । लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा हैरानी इस बात की थी कि अब उसने शायद यहाँ एक आत्मा; एक भूत के साथ रहना सीख लिया था । और अब उसका डर कम हो चूका था, जो मैंने उसके दिल में भरा था ।
पलक ने हल्की - सी मुस्कुराहट के साथ "मैंने.. तुमसे कहा था ना, कि.." धीरे से कहा ।
उसकी बात सुनते ही, "हंमम.. आई'एम सॉरी । शायद मैंने फ़िर से तुम्हे डरा दिया ।" मैंने तुरंत परेशान होकर हिचकिचाते हुए माफ़ी मांगी ।
हर वक्त मैं यही कोशिश करता कि मेरी वजह से किसी को कोई परेशानी ना हो । लेकिन पलक को इतनी तकलीफ़ें देने के बाद अब मैं उसके सामने जाते ही परेशान हो जाता । और अगर मेरी वजह से भूल कर भी उसे कोई तकलीफ़ पहुंची तो मैं बेचैन हो जाता ।
मुझे माफ़ करते हुए, "नहीं, बिल्कुल नहीं । अब मुझे तुमसे.. डर नहीं लगता । असल में मैं कब से तुम्हारा इन्तजार कर रही थी ।" पलक ने छोटी सी मुस्कान के साथ कहा ।
"क्यूँ..! कोई प्रोबलम है ?" मैंने तुरंत परेशान होकर सवाल किया और उसके पास गया ।
"नहीं, मैं कब से तुम्हें शुक्रिया कहना चाहती थी ।" पलक ने मेरी तरफ़ देखते हुए, "शुक्रिया..! आज तुम्हारी वजह से मैं उस आर्टिकल को पूरा कर पायी । थेंक यू ।" हल्की - सी मुस्कुराहट के साथ कहा ।
"इट्स ऑल राईट । इसमें कोई बड़ी बात नहीं है ।" मैंने हल्की - सी मुस्कुराहट के साथ, "लेकिन.. सच कहूँ तो.. काफ़ी समय बाद किसी के काम आकर मुझे काफ़ी अच्छा लग रहा है । और तुम्हे खुश देखकर मैं भी बहुत खुश हूँ ।" उसकी तरफ देखकर कहा ।
तब अगले ही पल, "वैसे क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकती हूँ ?" पलक ने हिचकिचाते हुए धीरे से सवाल किया । और मैंने धीरे से सर हिलाकर उसे सहमति दी ।
और तब, "क्या मैं जान सकती हूँ कि उस दिन तुम्हारे और तुम्हारे दोस्तों के साथ क्या हुआ था ?" पलक की कांपती हुई धीमी आवाज़ में उस सवाल को सुनते ही मैं हैरान रह गया ।
गुस्से और झुंझलाहट में, "नहीं, उन सब डरावनी और ख़तरनाक बातों को तुम्हारे सामने दोहरा कर मैं तुम्हे परेशान नहीं करना चाहता । तुम उन बातों को नाहिं जानो, यही तुम्हारे लिये अच्छा होगा ।" मैंने पलक को कठोरता से मना कर दिया ।
अपने अतीत की बातें सुनते ही मैं ख़ुद पर काबू नहीं रख सका । पलक के इस सवाल ने मेरा गुस्सा फ़िर जगा दिया था । और मेरे काबू खोते ही कमरे की बत्तियाँ जलने - बूजने लगी । मेरे गुस्से के कारण थरथराती चीजों के बीच मैं पलक की डर से कांपती हुई धड़कने सुन सकता था ।
मेरे गुस्से के कारण पैदा हुई इन असाधारण घटनाओं से पलक डर महसूस कर रही थी । मगर सच तो ये था कि मैं.. अपने भयानक अतीत की डरावनी बातें बताकर उसके मन में खौफ़ नहीं भरना चाहता था । लेकिन अपने अतीत की उन घटनाओं के बारें में सोचते ही मेरे अंदर की तकलीफ़ बाहर आ जाती ।
"मैं जानती हूँ, तुम मुझे परेशान नहीं करना चाहते । लेकिन मुझे तुम्हारे चेहरे पर इस बात की तकलीफ़ साफ़ नज़र आ रही है ।" पलक ने, "मैंने आज तक इसी बात का ख़्याल रखा कि मैं चाहे किसी को कोई खुशी ना दे पाऊँ, मगर मेरी वजह से किसी को कोई तकलीफ़ ना हो । लेकिन.." धीरे से कांपती हुई आवाज़ में, "जबसे मैं यहां आयी हूँ तबसे मैं यही महसूस कर रही हूँ कि मेरी वजह से तुम्हारा यहां रहना मुश्किल हो गया है । जैसे तुम्हारी आज़ादी मेरी वजह से ख़त्म हो गयी है । तुम कई बार मुझे देखकर चलें जाते हो । तुम किसी भी जगह अपनी मर्ज़ी से जा नहीं सकते ।" कहते हुए सर झुका लिया ।
पलक इन सब चीजों के बारे में सोचकर काफ़ी मायूस थी । सारी बातें सोचकर उसकी आंखों में नमी आ गई थी । मेरी वज़ह से उसके मन में छाया डर अब कम हो गया था । लेकिन शायद उसके दिल का अकेलापन उसे चैन से जीने नहीं दे रहा था । और उसकी वो तड़प मैं.. महसूस कर सकता था ।
"तुम गलत समझ रही हो । तुम्हारे होने से मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हो सकती ।" पलक की तकलीफ़ देखकर मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया, "तुम्हारे यहां आने से पहले मैं बिल्कुल अकेला था । ऐसा कोई नहीं था जो मेरे खौफ के बावजूद यहां आने की हिम्मत कर पाता, जो मुझे शांत कर पाता ।" और मैंने ख़ुद को संभालते हुए उसे समझाया ।
मेरी बात सुनते ही पलक ने सर उठाकर मेरी तरफ़ देखा ।
"अगर यही सच है तो प्लीज़ मुझे बताओ कि तुम्हारे साथ ऐसा क्या हुआ था, जो तुम उस बात को याद करते ही आज भी बेचैन हो जाते हो ?" अपनी सवालों भरी आंखों से मुझे देखते हुए, "ऐसा क्या हुआ था कि दूसरों को इस जगह से दूर रखने में तुमने ख़ुद को यही कैद कर लिया ?" पलक ने काफ़ी काफ़ी नम आवाज़ में पूछा ।
पलक की बातें मुझे गहराई तक छू रही थी । मैं उसके चेहरे पर ये तकलीफ नहीं देख पा रहा था । लेकिन पलक के इतना ज़ोर देने के बाद भी उन बातों कहने की हिम्मत ना कर पाने से मुझे अपनेआप पर गुस्सा आने लगा था ।
"मैं तुम्हे इस तरह से परेशान होते नहीं देख सकती । जब तक तुम मुझे अपनी परेशानी नहीं बताओगेे तब तक मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाउंगी ।" पलक ने परेशान होकर धीरे से कहा ।
"अब काफ़ी देर हो चूकी है ।" पलक की बात पर गुस्से में मेरे मुँह से निकल गया, "अब तुम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती । इसलिये तुम उन बातों को जानने की कोशिश ना ही करो तो अच्छा होगा ।" और जाने से पहले आख़िरी बार मैंने पलक को मुड़कर देखा ।
मैं उसे ऐसी कोई बात नहीं बताना चाहता था जिससे उसे कोई भी तकलीफ़ हो । लेकिन जस्बातों में आकर कहीं मैं उसे सारी बातें ना बता दूँ, यही सोचकर मैं आगे बढ़ गया ।
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 महसूस कर सकता था ।"तुम गलत समझ रही हो । तुम्हारे होने से मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हो सकती ।" पलक की तकलीफ़ देखकर मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया, "तुम्हारे यहां आने से पहले मैं बिल्कुल अकेला था । ऐसा कोई नहीं था जो मेरे खौफ के बावजूद यहां आने की हिम्मत कर ...

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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें