Chapter 4 - Palak (Part 2)

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  • इन्हें समर्पित: neharica
                                    

दोपहर 12:30  बजे ।
घर  पहुंचने  के  कुछ  देर  बाद  मैंने  और  सलोनी  ने  मिलकर  अपना  काम  शुरूकर  दिया । 
"पलक !  क्या  तुमने  यहाँ  का  कित्चन  देखा ?"  सलोनी  ने  आगे  बढ़ते  हुए  सवाल  किया । 
"नहीं,  मैंने  नहीं  देखा ।"  उसके  पीछे  जाते  हुए  मैंने  कतराते  हुए  कहा । 
सिढ़ियों  के  बिच  से  सीधे  आगे  बढ़ते  हुए,  बाई  तरफ़  एक  बड़ा  दरवाज़ा  बना  हुआ  था ।  और  सलोनी  के  पीछे  चलते  हुए  हम  उसी  दरवाज़े  को  खोलकर  अंदर  किचन  तक  जा  पहुँचें ।
ये  महल  भले  ही  ऐतिहासिक  हो ।  भले  ही  कई  सो  सालों  पेहले  बना  हो।  लेकिन  यहां  का  किचन  काफ़ी  फैंसी  और  आधुनिक  सुविधा  से  लैस  था।  यहां  का  किचन  सच  में  काफ़ी  बड़ा  था ।
"तो  ये  है  तुम्हारा  रोयल  किचन ।"  सलोनी  ने  अंदर  जाते  ही,  "ये  महल  ज़रूर  पुराना  है।  लेकिन  यहां  की  सारी  सुविधाएं  बिल्कुल  हाईफाई  है।"  पलटकर  मेरी  तरफ़  देखकर  मुस्कुराते  हुए  कहा । 
"ठीक  कहा  तुमने।  क्या  ये  सब  पैलेस  के  मालिक  ने  करवाया  था?"  गहरी  सोच  के  साथ  मैंने  सवाल  किया।
"हां।  असल  में,  मिस्टर.  शर्मा  ख़ुद  यहां  रहने  आने  वाले  थे।  इसलिए  उन्होंने  यहां  की  मरम्मत  कराई।  और  सभी  सुविधाएं  उपलब्ध  कराई।  वो  एक  दो  बार  यहां  रहने  भी  आ  चुके  हैं।  लेकिन  फिर  अचानक  उन्होंने  अपना  मन  बदल  दिया।"  मेरे  सवाल  का  जवाब  देते  हुए  सलोनी  खिड़कियाँ  खोलने  लगी,  जो  दरवाज़े  के  बिल्कुल  सामने  की  तरफ  बनी  हुई  थी । 
क्या  मिस्टर.  शर्मा  ने  गाँव  वालों  की  बातों  में  आकर  अपना  फ़ैसला  बदल  दिया?  या  उन्होंने  भी  यहां  कोई  ऐसी  चीज़  को  मेहसूस  किया  होगा  जिससे  वो  अपना  फ़ैसला  बदलने  को  तैयार  हो  गए?
अंदर  जाते  ही  चमकते  सफ़ेद  संगमरमर  से  बने  फर्श  पर, अंदर  कमरे  के  बीचोंबीच  चिमनी  के  तले  शानदार  कूकींग  टेबल  मेरे  सामने  था,  जिस  पर  चार बर्नर  वाला  बड़ा  स्टॉव  रखां  हुआ  था ।  सामने  कूकींग  टेबल  के  पीछे  की  तरफ़  लंबा  किचन  प्लेटफ़ॉर्म  था,  जो  लाल  संगमरमर  से  बना  था ।  उसीके  उपर  दीवार  से  भरते  हुए  कई  सारे  हल्के-सुनहरे  और  सफ़ेद  रंग  के  कपबर्ड्स  बने  हुए  थे ।  दाई  तरफ़  प्लेटफ़ॉर्म  के  आख़िर  में  एक  बड़ा  बेसीन  लगाया  गया  था  और  उसके  ऊपर  बड़ी  सी  खिड़की  बनी  हुई  थी ।  तो  वहीं  दरवाज़े  के  दाई  तरफ़  एक  बड़ा  सा  रेफ्रिज़रेटर  रखां  हुआ  था । 
"पलक,  तुम  फ्रिज़  का  बटन  ऑन  कर  दो ।  क्योंकि  उसे  ठंडा  होने  में  थोड़ा  टाईम  लगेगा ।"  सलोनी  ने  अंदर  जाते  ही  कहा  और  सारा  सामान  वहाँ  के  लंबे  प्लेटफ़ॉर्म  पर  रख  दिया । 
उसके  बाद  फ्रिज़  का  बटन  ऑन  करते  ही  मैं  भी  सलोनी  के  साथ  किचन  के  कामों  में  जुट  गई ।  सबसे  पहले  वहां  की  अच्छी  तरह  से  सफ़ाई  करने  के  बाद  हमने  सारा  सामान  खोलकर  चीज़ों  को  सही  जगह  पर  रखना  शुरू  किया ।  और  फ़िर  हमने  ग्रोसरी  का  सामान  निकालना  शुरू  किया । 
"पलक,  एक  काम  करते  हैं ।  मैं  इन  सब  चीज़ों  को  जार  में  डालती  हूँ,  तुम  इन्हें  शेल्फ  में  रखना  शुरू  करो ।"  सलोनी  ने  जल्दी  से  पेकेट  खोलकर  चीज़ों  को  जार  में  भरना  शुरू  कर  दिया ।  
सलोनी  चीज़ों  को  जार  में  भरकर  किचन  के  बीच  बनें  कूकींग  टेबल  पर  रखती  जा  रही  थी  और  मैं  जार  के  ढक्कन  बंध  करते  ही  उन्हें  दायी  तरफ़  के  कपबर्ड  में  रखती  जा  रही  थी । 
मैं  एक-एक  करके  लगभग  सभी  जार  अंदर  शेल्फ  में  रख  चूकी  थी ।  अब  बस  कुछ  ही  औ़र  जार  रखना  बाकी  था ।  तब  आख़िरी  बचा  जार  लेने  के  लिए  मैं  पीछे  मुड़ी  और  जार  उठाकर  पलटते  ही  सामने  देखकर  मैं  बिल्कुल  हैरान  रह  गयी ।  मैंने  देखा  कि  शेल्फ  से  वो  सारे  जार  अचानक  गायब  हो  गए  थे,  जो  मैंने  कुछ  ही  समय  पहले  यहां  रखें  थे । 
वो  जार  बस  एक  मिनट  से  भी  कम  समय  में  गायब  हो  गए  थे !  इतने  सारे  जार  एक  ही  पल  में  यूं  हवा  में  गायब  कैसे  हो  सकते  थे !?  मेरे  लिए  ये  बात  काफ़ी  बेचैन  करनेवाली  थी ।  इस  हादसे  ने  मुझे  काफ़ी  परेशान  कर  दिया  था ।  क्योंकि  यहाँ  मौजूद  उस  अंजान  साये  को  मैंने  पहले  ही  दिन  महसूस  कर  लिया  था ।
"स..सलोनी !"  अपनी  हड़बड़ाहट  को  छुपाते  हुए,  "तुमने  वो  जार  देखे  जो  मैंने  यहाँ  शेल्फ  में  रखें  थे ?"  मैंने  धीरे  से  सवाल  किया । 
"नहीं,  मैंने  नहीं  देखे ।"  सलोनी  के  इस  जवाब  ने  मुझे  सोच  में  डाल  दिया । 
"अरे...  वो  देखों  तुम्हारे  जार ।"  सलोनी  ने  बेसीन  की  तरफ़  इशारा  करते  हुए  कहा । 
"ले..किन...  मैंने  तो  ये  जार  यहाँ...  तो  ये  वहां  कैसे...!?"  अपनी  परेशानी  और  हड़बड़ाहट  में  मेरे  मुँह  से  निकल  गया । 
"अरे...  तुम  वहाँ  रखकर  भूल  गई  होगी ।"  सलोनी  ने  बात  को  हल्के  में  लेते  हुए  मुस्कुराकर  कहा । 
पर  मुझे... याद  था  कि  मैंने  वो  सभी  जार  यहीं  इसी  शेल्फ  पर  रखें  थे ।  मैं  इतनेे  सारे  जार  को  इतना  दूर  नहीं  रख  सकती  थी ।  मगर  फ़िर  वो  वहाँ  कैसे  पहुँचें...  मैं  बस  एक  पल  के  लिए  पीछे  मुड़ी  और  इतनी  जल्दी  इतना  सब  कैसे  हो  सकता  था ?!  लेकिन  मेरे  साथ  जो  भी  हो  रहा  था  वो  सब  मेरी  समझ  के  बाहर  था । 
मगर  जो  भी  हो  मुझे  ये  काम  फिरसे  करना  था ।  इसलिए  मैं  वहां  जाकर  सारे  जार  इस  तरफ  ले  आई ।  और  उन्हें  फ़िर  से  अंदर  शेल्फ  में  रखना  शुरू  कर  दिया ।  कुछ  ही  देर  में  आख़िरकार  उन  सभी  जार  को  अंदर  रखकर  मैंने  शेल्फ  का  दरवाज़ा  बंधकर  दिया । 
मगर  तभी...  शेल्फ  के  दरवाज़े  पर  लगे  शीशे  में  अचानक  नज़र  आयी  किसी  की  हल्की  सी  काली  परछाईं  ने  मुझे  चौंका  दिया ।
'हमारे  सिवा  यहां  कोई  औ़र  भी  है,  जो  हमें  देख  रहा  है ।'  इस  सोच  ने  मुझे  और  भी  ज़्यादा  डरा  दिया ।  उस  परछाईं  को  देखते  ही  मैं  डर  के  मारे  लड़खड़ाते  हुए  कदमों  से  पीछे  हट  गई । 
वो  जो  कोई  भी  था,  मैं  बस  उसकी  बहोत  ही  हल्की  सी  परछाईं  देख  पायी  थी ।  लेकिन  फिर  भी  मैं  बहोत  डर  गयी  थी ।  इसी  बीच  पीछे  हटते  हुए  मैं  पीछे  कूकींग  टेबल  से  टकरा  गयी  और  घबराहट  में  मैंने  पीछे  मुड़कर  देखा ।  लेकिन  वहाँ...  कोई  नहीं  था ।  और  जब  मैंने  फ़िर  आगे  पलटकर  देखा ।  मगर  तब  तक  शीशे  में  उस  परछाईं  का  अक्षत  भी  गायब  हो  चुका  था । 
उस  वक्त  मैं  बहोत  ही  हैरान  और  डरी  हुई  थी ।  मगर  मैंने  सलोनी  को  इस  बात  का  पता  नहीं  चलने  दिया ।  क्योंकि  मैं  जानती  थी  कि  सलोनी  को  इस  बात  का  पता  चलते  ही  वो  बिना  कुछ  सोचे  मुझे  अपने  साथ  ले  जाती  और  अपने  साथ  उन  दूसरी  लड़कियों  को  भी  मुश्किल  में  डाल  देती । 
"स..सलोनी..!"  ख़ुद  को  संभालते  हुए,  "तुम  बहोत  काम  कर  चूकी ।  अब  तुम  बाहर  जाकर  कुछ  देर  आराम  करो ।  व..वैसे  भी  हमें  काम  करते  हुए  काफ़ी  समय  हो  चूका  है ।  मैं  हमारे  लिए  चाय  बनाकर  लेकर  आती  हूँ ।"  मैंने  कांपती  हुई  आवाज़  में  ही  सही  मगर  सलोनी  को  बाहर  जाने  को  कहा।  ताकि  सलोनी  को  यहां  से  दूर  रख  पाऊं। 
"ठिक  हैै ।"  मुस्कुराकर  जवाब  देते  ही,  "मैं  बस  ये  सब्जियां  फ्रिज  में  रख  देती  हूँ ।"  सलोनी  अपने  काम  में  जुट  गई । 
"पलक,  मेरा  काम  ख़त्म  हो  गया  है ।  मैं  होल  में  जाकर  बैठती  हूँ ।  तुम  भी  जल्दी  आओ ।  ओके?"  अपना  काम  ख़त्म  करते  ही  सलोनी  नेे  कहा ।  और  मैंने  सहमति  में  अपना  सर  हिलाया ।
"और  हाँ,  अगर  कुछ  काम  हो  तो  बुला  लेना ।"  सलोनी  ने  जाते  हुए  आख़िरी  बार  मेरी  तरफ़  पलटकर  कहा  और  बाहर  चली  गई । 

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें