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मानवी बड़ी देर से बिकाश का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही बिकाश की गाड़ी की आवाज़ आई वो दौड़ती हुई बाहर आई, लेकिन जैसे ही उसने बिकाश को देखा उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। माथे पर बड़ी सी पट्टी यही नहीं हाथ पैर में भी चोट।

"दादा, एटा की होलो दादा? सर पर ये पट्टी तुम्हारे साथ ये सब क्या हुआ दादा? तुम ठीक तो हो न ?" मानवी ने पूछा।

"मैं एकदम ठीक हूँ बिकुली, तेरा दादा एकदम ठीक है, घबरा मत हम्म" बिकाश ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा।

"अरे ऐसे कैसे ठीक है?" मानवी घबराते हुए बोली।

"अरे चिल्ला मत, मैं नहीं चाहता कि बाबा मुझे ऐसे देखें" उसने जवाब दिया।

"दुग्गा दुग्गा ! कुछ बोलते क्यों नहीं दादा, ये सब कैसे हुआ?" मानवी ने फिर पूछा।

"पहले ये बता बाबा कहाँ हैं?"

"अपने दोस्त के घर गए हैं"

"गुड़, चल अंदर चल सब बताता हूँ" वो अंदर आते हुए बोला।

"दादा बोलो न, मेरा दिल बैठा जा रहा है" मानवी ने कहा।

"पानी तो पिला, ये क्या आते ही सवालों की बरसात कर दी" बिकाश ने सवाल पलटते हुए कहा।

"ठीक है, लाती हूँ रुको" वो झट से अंदर गई और ग्लास भर के पानी ले आई।

"और हां सुन बिकुली, दो दिन में ये पट्टी उतर जाएगी, तब तक मैं बाबा के सामने नहीं जाऊंगा, तुझे संभालना होगा, मैं नहीं चाहता कि बाबा मुझे ऐसी हालत में देखें" बिकाश ने कहा।

"दादा तुम न मेरी समझ मे बिल्कुल नहीं आते हो, अरे बताओ सही ये सब हुआ कैसे, किसी से झगड़कर आए हो क्या" मानवी ने पूछा।

"एक बात बता, तू गई क्यों नहीं आज काम पर? छुट्टी है क्या?" बिकाश ने फिर सवाल पलटते हुए कहा।

"जानी, आमी जानी, आप क्या कर रहे हैं, सब समझती हूँ मैं, ठीक आछे, मैं जाती हूँ, अब खुद बचना बाबा से" मानवी ने सामने पड़ा पर्स उठाया और चल दी अपने काम पर ।

यहाँ हवेली में आदित्य भी लौट आया था। अपनी माँ को वो बीती रात की घटना बता रहा था। कैसे उसे बिकाश मिला और कैसे उसने बिकाश की जान बचाई। इतने में उसने देखा मानवी आ चुकी थी।

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