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"तुम फिर यहां आ गए आदित्यनाथ ठाकुर, इतने बार बेज़्ज़त करके तुम्हे यहां से भेज चुकी हूं, लेकिन तुम तो बड़े बेशर्म हो फिर यहां चले आते हो" केसर ने कठोर स्वर में कहा।

"देखो केसर मेरी बात सुनो..."

आदित्य कुछ कह पाता इस से पहले ही केसर ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा "केसर बाई,सिर्फ और सिर्फ केसर बाई हैं तुम्हारे लिए, और हमे कुछ नहीं सुनना छोटे ठाकुर, लौट जाओ, अभी इसी वक्त"

"मैं ये लाया था तुम्हारे लिए" आदित्य एक थाली आगे बढ़ाते हुए बोला। उस थाली में वही साड़ियाँ तमाम साज और श्रृंगार का सामान था, कुछ पैसे भी थे और साथ ही उसके बगल में एक थैला भी था जिसमे खाने पीने की तमाम चीज़ें थीं |

"वाह आदित्य ठाकुर तुम तो केसर बाई को कपडे और गहनों का लालच देने लगे, केसर बाई को तुम्हारी किसी सौगात की ज़रूरत नहीं है, लौट जाओ इसे लेकर " वो तेज़ आवाज़ में बोली |

"केसर , मैं जानता हूँ , तुम्हारा दिल टूटा है तुम्हें बहुत चोट पहुंची है, लेकिन तुम ये भी जानती हो कि मेरी नीयत तुम्हारे लिए कितनी पाक़ है " कहते कहते आदित्य की आँखें भर आई थीं |

"तुम्हारी नीयत से मेरी नियति नहीं बदलेगी छोटे ठाकुर, मेरे ज़ख्मो को और मत कुरेदो, जाओ यहाँ से" केसर ने कहा |

"मैं सिर्फ अपना फ़र्ज़ निभा रहा हूँ"

"केसर बाई के लिए तुम्हारा कोई फ़र्ज़ नहीं है छोटे ठाकुर, जाओ यहाँ से " केसर ने मुंह फेरते हुए कहा |

आदित्य अपने आंसू पोंछता है और फिर कहता है "दुर्गा पूजा की इच्छा रखता हूँ इज्ज़त या प्यार या किसी भी तरह के अपनेपन की उम्मीद नहीं करता मैं, पर कम से कम अपने आँगन की मिटटी देकर मुझे पवित्र कर दो केसर "

केसर सर हिलाती है और फिर अपने आँगन से थोड़ी मिटटी लाती है, आदित्य अपनी कुरते से झोली फैलाकर उसके सामने किसी फ़क़ीर की तरह खड़ा हो गया | केसर उसकी झोली में मिटटी डाल देती है |

आदित्य वापस लौट रहा था कि तभी वहां किसी के आने की आहाट केसर को समझ आई, पीछे पलटकर देखा तो उसके सामने बिकाश खड़ा था | केसर ने झट से पर्दा डाल दिया | बिकाश आदित्य का चेहरा नहीं देख पाया था |

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