रॉय परिवार जलपाईगुड़ी आ चुका था | बिकाश और मानवी के बहुत मानाने पर परितोष जलपाईगुडी आने के लिए मान गया था | एक हफ्ता बीत गया था और बिकाश के पुराने घर में लगभग अब सारा सामान भी आ चुका था | बिकाश को अगले दिन से अपनी जिम्मेदारियां संभालनी थीं, मालबाज़ार सबडिवीज़न का एस. डी. एम जो था |
"भैया संभलकर रखो न, परा हबे" कहते हुए मानवी अन्दर आई, उसे अपना कोई ज़रूरी सामान रखवाना था|
"ये क्या ला रही है मानवी " बाबा ने पूछा |
"अभी बताती हूँ बाबा "
मानवी तुरंत अन्दर जाकर एक कलश लेकर आई और फिर घर के हॉल के पूजा-घर को साफ़ किया | उसने रोली चन्दन से वहां एक स्वस्तिक बनाया और उसपर अक्षत्र चढ़ा दिए | उस बक्से को खोलकर उसने देवी दुर्गा की बड़ी प्यारी सी प्रतिमा निकाली और उसे उस पूजा घर में स्थापित कर दिया | फिर दोनों हाथ जोड़कर वो उनके आगे खड़ी हो गई |
"सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ जय माँ दुग्गा " ऐसा कहते हुए उसने देवी को प्रणाम किया |
बिकाश और परितोष ने भी कहा "जय माँ दुग्गा " मानवी हस्ते हुए पलटी तो उसने देखा की परितोष और बिकाश उसे बड़ी ही हैरानी से देख रहा था |
"की होलो बाबा, दादा? ऐसे क्यूँ देख रहे हैं आप हमें "
"बाबा बिकुली जब ऐसा कुछ करती है न तो मुझे माँ की झलक नज़र आ जाती है इसमें "
"एकदम साथिक बोलिछेन, बिलकुल सही बोल रहा है तुम बिकाश , ये तुम्हारी बिकुली न कभी कभी जो हरकतें करती है न, तुम्हारी माँ याद आ जाती हैं "
"क्या आप लोग भी, गोपाल से कहा है वो खाना तैयार कर रहा है, बाबा दादा खाना खा लेते हैं फिर हमलोग मंदिर जायेंगे बड़ा मंदिर है न काली माँ का, बाबा कल दादा का पहला दिन है न तो ऐसा करना ठीक रहेगा " मानवी ने कहा |
"हाँ , ठीक आछे" बाबा ने हामी भरते हुए कहा |
उन सब लोगों ने खाना खाया और फिर वो तीनो काली माँ के मंदिर गए | जैसे ही वो तीनो मंदिर के अन्दर पहुंचे बिकाश को कुछ याद आया |
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Sacred
RomanceThe bond that needs no definition, much more pure than any defined relationship. This is a story of such people having such a bond. हर रिश्ते की कोई न कोई परिभाषा होती है, लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिनका कोई नाम तो नहीं होता, पर भावनाओं से ओतप्...