Chapter 21 - Chandra (part 3)

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तरंग का रूहानी भाई • दूसरी दुनियां • पूर्वा और तरंग

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तरंग का रूहानी भाई • दूसरी दुनियां • पूर्वा और तरंग

पर तभी अचानक, "उसने तरंग के साथ क्या किया ?!" पलक ने परेशान होकर सवाल किया ।
शायद पलक को ये आभास हो चुका था कि तरंग के साथ कुछ होने वाला था । और वो उसे लेकर काफ़ी परेशान थी ।
तब पलक की तरफ़ मुड़कर देखते ही वो थोड़ी शांत हो गई । "..तरंग की सहमति पाते ही उस रूह ने तरंग के सेलफोन की ओर देखा, जो उसकी जीन्स की पॉकेट में था । उसी पल मैसेज सेंड होने की आवाज़ सुनाई दी । और तरंग ने हैरान होकर अपने मोबाइल की ओर देखा । ठीक उसी वक़्त अचानक वाणी के कमरे में रखा एक फ्लॉवरपोर्ट तरंग के पीछे से उड़कर उसकी ओर आया और ज़ोर से उसके सर से जा टकराया । उसके कुछ देर बाद जब तरंग को होश आया तो वो ज़मीन पर लेटा था और उसने अपने आगे एक लड़के को खड़ा पाया, जिसका हूलिया बिल्कुल वैसा ही था जैसा पूर्वा ने बताया था, सिवाय उसकी उन फ़िकी स्लेटी रंग की आंखो के, जो अपना रंग बदल लेती थी । उसे देखते ही, 'तुम पागल हो क्या !? इतना ज़ोर से भी कोई मारता है ! मुझे लगा ही था । इससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला ।' तरंग ने चिड़ते हुए कहा । और झुंझलाहट में खड़ा हो गया । लेकिन जैसे ही वो खड़ा हुआ वो अपने सामने का नज़ारा देखकर दंग रहे गया । उस रूह की वजह से तरंग दूसरी दुनियां में पहुंच चुका था । वो दोनों उसी वक़्त और उसी जगह पर पहुंच गए थे, जो उन्होंने तस्वीर में देखी थी । 'हमारे पास समय बहोत कम है । हमें वाणी को तुरंत ढूंढ़ना चाहिए । वरना वो चुड़ैल उसे वापस नहीं लौटने देगी ।' तरंग के भाई ने अपनी सख़्त आवाज़ में गंभीरता से कहा । और अगले ही पल वो दोनों वाणी को ढूंढ़ने निकल पड़े । दूसरी तरफ़ पूर्वा अपने पुराने घर से वाणी के घर आने वाले रास्ते पर चलना शुरू कर चुकी थी और जिसका लाइव GPS नेविगेशन तरंग के फ़ोन में दिखाई देने लगा था । कुछ देर की कोशिश के बाद आख़िरकार तरंग और उसके भाई को वाणी मिल गई । मगर तरंग के भाई को देखकर वाणी काफ़ी डरी हुई थी । इसलिए उन्हें दूर से ही देखकर वो उनसे बचकर छिपती रही थी । वाणी कई सालों से पारलौकिक दुनिया में फंसी थी । और इतने सालों में उसने पारलौकिक शक्तियों के कई डरावने रूप को देख लिया था । वो इन मायावी शक्तियों के छलावे और उनके दिमागी खेल से अच्छी तरह वाकिफ थी । इसलिए उसे यहीं लग रहा था कि वो दोनों भी उसके लिए ख़तरा है । 'तुम यहीं रुको । मैं उसे समझाता हूं ।' तरंग ने अपने भाई को दूर रूकने को कहा । और वाणी के पास पहुंचा । वाणी उसे अपने पास आता देखते ही उससे दूर भागने लगी । मगर तभी तरंग के मुंह से पूर्वा का नाम सुनकर वो तरंग के पास वापस लौट आई । तरंग ने वाणी को उसके और पूर्वा के बारे में सारी बातें बताई । जिससे वाणी को उस पर यक़ीन हो गया । 'मैं समझ गई कि तुम वाणी के दोस्त हो और मुझे बचाने आए हो । लेकिन, वो कौन है ?' वाणी ने तरंग के भाई के बारे में सवाल उठाया । 'वो एक बहोत लंबी कहानी है । मैं आपको बाद में बताऊंगा । लेकिन इस समय हमारा यहां से निकलना ज़्यादा ज़रूरी है । यहां बहोत ख़तरा है ।' तरंग ने वाणी को सारी हकीक़त बताते हुए कहा । और वाणी कतराते हुए ही सही मगर उनके साथ जाने के लिए राज़ी हो गई । लेकिन उसी वक़्त वाणी के पीछे पड़ी उस औरत की भयानक रूह ने उन पर हमला कर दिया । वो तरंग और उसके भाई को दूर भगाकर वाणी को अपने साथ ले जाना चाहती थी । लेकिन तरंग और उसके भाई ने एक साथ मिलाकर लड़ते हुए उसे वाणी से दूर किया । और वो तीनों तुरंत वहां से निकल पड़े । उनके आसपास 5-6 साल पुरानी इमारतें और दीवारें खड़ी थी । लेकिन उन्हें आज के समय के रास्ते के मुतबिक़ आगे बढ़ना था । जो बहोत मुश्किल था । क्यूंकि बीते समय के मुताबिक़ वहां पार्क और दूसरी इमारतों की हदे फैली थी । और जिस जगह रास्ता नज़र आ रहा था वो उन्हें वहां नहीं पहुंचा सकता था, जहां वो जाना चाहते थे । ऐसे में पूर्वा के बताए रास्ते को फ़ॉलो करते हुए उनके सामने दीवार आ गई । 'अब क्या करें !?' वाणी ने परेशान होकर कहा । 'हम रास्ता नहीं बदल सकते । हमें यही से आगे बढ़ना होगा । हमें इस दीवार को तोड़ना होगा ।' तरंग ने सोच-समझकर ज़ल्दबाज़ी में कहा । और तभी अचानक तरंग के भाई की आंखें गहरे लाल रंग में डरावने ढंग से चमक उठी और उसके हाथों से इशारा करते ही उनके सामने आई दीवार चकनाचूर होकर बिखर गई । और वो तुरंत आगे बढ़ गए । लेकिन उनके ऊपर मंडरा रहा खतरा अभी भी टला नहीं था । वो शैतानी आत्मा अभी भी उनके पीछे पड़ी थी । मगर अपने सामने आई हर दीवार को तोड़कर वो पूर्वा के ज़रिए दिखाएं रास्ते पर चलते रहे । और काफ़ी आगे तक निकल आए । इसी तरह सूझ-बूझ और समझदरी से आगे बढ़ते हुए वो अपनी मंज़िल के बिल्कुल क़रीब पहुंच गए । मगर तभी अचानक उस काली चुड़ैल की माया ने वाणी को जकड़ लिया । इसके अगले ही पल उसने तरंग और उसके भाई पर भी हमला कर दिया । उसी वक़्त उस शैतानी आत्मा से लड़ते हुए तरंग के भाई ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया । उसके उठाए तूफ़ान से एक पल के लिए उस काली आत्मा का ध्यान वाणी पर से हट गया । ठीक उसी दौरान तरंग के भाई ने अपनी शक्तियों से वाणी को उस भयानक आत्मा के चुंगल से निकल लिया । उसी पल वो आत्मा तूफ़ान को चीरते हुए आगे चली आई । लेकिन इससे पेहले कि वो वाणी तक पहुंच पाती तरंग और उसका भाई उसके सामने चले आए । 'हम इसे रोकते हैं । तुम जल्दी यहां से चली जाओ ।' तरंग के भाई ने बहोत मुश्किल से उस काली आत्मा को रोकते हुए अपनी भारी आवाज़ में कहा । उसी वक़्त तरंग ने 'ये लो । जल्दी यहां से निकलो। इसमें नक्शे पर दिख रही इस नीली लकीर को फ़ॉलो करती रेहना । तुम अपने घर के बहोत करीब हो ।' अपना मोबाईल फोन वाणी को देते हुए कहा । 'लेकिन तुम लोग ?!' मगर वाणी को उनकी फ़िक्र थी । 'मैंने आगे का नक्शा याद कर लिया है । तुम्हारे जाते ही हम भी वापस आ जाएंगे ।' तरंग ने वाणी को दिलासा देते हुए कहा और फ़िर से उस भयानक आत्मा को रोकने में जुट गया । तब तरंग की बात मानकर मौक़ा पाते ही वाणी तेज़ी से आगे बढ़ गई । मगर तरंग अब भी अपने भाई के साथ मिलकर उस काली चुड़ैल से लड़ रहा था । वहीं दूसरी तरफ़ पूर्वा अपने पुराने घर से वाणी के घर तक जा पहुंची । और तरंग को वाणी के पास बेहोश पड़ा देखकर वो काफ़ी घबरा गई । तरंग वाणी के बिस्तर के पास कुर्सी में बेहोश पड़ा था । उसने वाणी के हाथ को कसकर पकड़े रखा था । लेकिन उसके सर से लगातार खून बेह रहा था । जिसे देखकर पूर्वा बहोत ज़्यादा घबरा गई । उसने सावधानी से तरंग को सीधा खुर्शी में बिठाया और उसके ज़ख्म को साफ़ कर पट्टी बांधी । तभी अचानक वाणी ने बिस्तर पर लेटे हुए अपनी आंखें खोलकर पूर्वा की ओर देखा । पूर्वा अपनी बहेन को ठीक होता देखकर बहोत ख़ुश हुई । मगर तभी अचानक तरंग की हालत और बिगड़ने लगी । उसके शरीर के दूसरे हिस्सों पर भी अपनेआप घाव बनने लगे । तरंग बेहोशी में झटपटा रहा था और उसके शरीर से लगातार खून बेह रहा था ।" पलक के पूछे सवाल का जवाब देते हुए मैंने कहानी को आगे जारी रखा । वहीं पलक हर बार की तरह मेरे कहे उन शब्दों को पूरे ध्यान से अपनी डायरी में सहेजती रही ।
एक पल के लिए मुझे ख़ामोश पाते ही, "फ़िर क्या हुआ, चंद्र ? आगे क्या हुआ प्लीज़ बताओ ना ।" पलक ने मेरी तरफ़ देखते हुए प्यार से गुज़ारिश की ।
और एक पल के लिए गहरी सोच के साथ पलक की ओर देखते हुए, "तब तरंग की हालत बिगड़ी हुई देखते ही, 'शायद मुझे उनकी मदद के लिए वहां जाना होगा ।' पूर्वा ने परेशान होकर कहा और जल्दबाजी में तरंग का हाथ थामे उसके पास जाने के लिए तैयार हो गई । मगर वाणी ने, 'नहीं, पूर्वा । तुम वहां नहीं जा सकती । वो बहोत ख़तरनाक है । अगर तुम वहां गई तो वो तुम्हें मार देगी ।' उसे वहां जाने से रोक लिया । 'लेकिन मैं यहां बैठकर उसे मरता नहीं देख सकती । उसने हमारे लिए ये रिस्क उठाया था । और मैं उसे मरने नहीं दूंगी ।' पूर्वा ने परेशान होकर कहा । 'मैं तुम्हारे जज़्बात समझती हूं । लेकिन हमें यहीं रेहकर उसकी मदद करनी होगी ।' वाणी ने पूर्वा को शांत करते हुए समझाया । मगर, 'वो कैसे ?!' पूर्वा वाणी की बात नहीं समझ पाई । तब वाणी ने, 'उन तक हथियार पहुंचा कर ।' अपनी बात समझाते हुए दृढ़ता से कहा । इतना सुनते ही पूर्वा सब समझ गई । और उसने तेज़ी से वाणी के बिस्तर पर उसके गद्दे के नीचे छुपकर रखा छोटा सा त्रिशूल निकल लिया, जो वो काल भैरव मंदिर से अपनी बहेन की रक्षा के लिए लाई थी । उस त्रिशूल के मिलते ही पूर्वा तेज़ी से तरंग के पास पहुंची और उसने उस त्रिशूल को सावधानी से तरंग के हाथ में पकड़ा दिया । दूसरी तरफ़ तरंग और उसका रूहानी भाई उस भयानक आत्मा से लड़ रहे थे । तरंग का भाई बार बार उस काली चुड़ैल की आत्मा को अपनी शक्तियों से बांध रहा था । मगर वो आत्मा कुछ ही देर में आज़ाद होकर फ़िर से उन पर हमला कर देती । इस दौरान अचानक तरंग के हाथ में एक पवित्र त्रिशूल प्रगट हो गया । तब जैसे ही तरंग के भाई ने अपनी शक्तियों से उस भयानक आत्मा पर वार किया वैसे ही तरंग ने मौक़ा देखकर उस त्रिशूल को उस आत्मा के गले में घुसा दिया । और अगले ही पल वो शैतानी आत्मा काला धूंआ बनकर आसमान में गुम हो गई । उसके बाद वो दोनों तुरंत वापस आने के लिए मुड़ गए । यहां पूर्वा ने देखा कि तरंग के हाथ में त्रिशूल देने के कुछ समय बाद उसका झटपटाना बंध हो गया । वो शांत हो गया । जिसे देखकर पूर्वा को थोड़ी तसल्ली मिली । लेकिन कुछ ही मिनटों बाद अचानक तरंग खूर्शी पर बैठे हुए फ़िर झटपटाने लगा । उसकी सांसें असामान्य होने लगी । और शरीर पानी-पानी होने लगा । 'ये क्या हो रहा है ? क्या वो पवित्र त्रिशूल भी उस आत्मा को मुक्ति नहीं दिला पाया ?!' वाणी ने तरंग की हालत बिगड़ते देख चौंकते हुए कहा । 'नहीं, मैं जानती हूं ये कौन कर रहा है । हमें उसे रोकने का तरीक़ा खोजना होगा । वो भी अभी ।' पूर्वा ने तरंग की ओर फिक्रमंद नज़रों से देखते हुए गहरी सोच के साथ कहा ।" मैंने कहानी को आगे बढ़ाया ।
"क्या तरंग के भाई ने... बताओ ना, चंद्र ?" पलक ने आगे की घटना का अनुमान लगाते हुए तंग दिल से कहा ।
नहीं पलक, इतनी जज़्बाती मत हो । ये तुम्हारे लिए ठीक नहीं है । तुम नेक दिल और मासूम हो । तुम्हारा मन बहोत कोमल है । तुम कभी किसी को तकलीफ़ में नहीं देख सकती । क्या तुम इस छलावे से भरी बेरहम दुनिया की भयानक सच्चाई सेह पाओगी ?

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaWhere stories live. Discover now