कुछ लम्हें साथ उनके यूँ रेत पर गुजारें थे हमने,
समंदर की लहरों में कुछ ख्व़ाब बहायें थे हमने!वह हाथ मेरे हाथों में था आँखें चाँद पे टिकी थी,
जुल्फों में गले से लगा कर आँसू छुपायें थे हमने!मैं ख़ुश हुआ था बहोत मगर वह बड़े नादान थे,
कुछ सितारें गिरें थे मगर हाथ में छुपायें थे हमने!दूर तलक नहीं था कोई ख़ुदा पर भरोसा किया,
किनारों के कुछ पत्थर पानी में डुबायें थे हमने!यह जमाना तो है क़ाफिर मोहब्बत का दुश्मन,
कुछ मेरे सिवा भी ग़ालीब ए शेर सुनायें थे हमने!वह चाँद है कितना हँसीन दिल से निकला नहीं,
मुस्कुराहट अदाओं पे सारे रिश्ते मिटाये थे हमने!यह मुझे मंजूर नहीं था के उनका दम घूँट जाये,
चिड़ियों के कुछ सवाल हवा में उठायें थे हमने!
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अक़्स
General Fictionwinner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...