जाने क्यों

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जाने ऐसा भी होता है सहरा में फूल खिलता है,
पत्ता पत्ता हवाओं में खुशबू सा बिखर जाता हैं!

कोई सुबह सा आकर धीरे धीरे गुज़र जाता है,
डूब जाये अंबर तो खूब रंग सा ठ़हर जाता है!

जाने किस ओर से आया जाये मुसाफ़िर कहाँ,
होगा कोई गाँव शायद जाने किस शहर जाता है!

जलता हैं दिया हर घर में सुबह बुझ जाता है,
जाने कोई चिराग़ बुझते बुझते ही रह जाता है!

ख्व़ाब हो या हो सावन दिल छूक़र जाता है!
आता हैं जो मौसम कि तरह लौट कर जाता है!

टूट कर बहता हैं साहिल किनारा बदल जाता है,
प्यास बुझाने से पहले कोई पानी को मुक़र जाता है!

कहने को दीवाना यह झ़ील क्यों क़तर जाता है,
होता है दिल जितना तनहा उतना भीतर जाता है!

अक़्स Where stories live. Discover now