सिलसिला

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वह सिलसिला ही जब रूक गया तो बात क्या करें,
वह सामने जुदा हुआ हँसते हुए तो साथ क्या करें!

हमें नाज़ था कभी ख़ुद पर बहोत जब धनवान थे,
वह दोस्त ही जब दुश्मन हुआ है तो हाथ क्या करें!

वह दिन भी क्या दिन थे जब सितारें कदम चुमते थे,
यह दिन कटता है बड़े आराम से तो रात क्या करें!

हमने तो बाँट ली सब से मोहब्बत फ़कीर बन कर,
वह दुवा माँगते है ख़ुदा से किसी से घात क्या करें!

चलतें थे हम जिस कदम पर कहते थे एक दूजे है,
वह निकल गया आगे बहोत ही तो मात क्या करें!

अक़्स Where stories live. Discover now