झंकार

By Shubhamq183

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#1 in poetry___7. 7. 18 and 19. 8.17 कागज़ के झरोखों से झांकते, मेरी स्याही में लिपटे अलफाज.... More

तन्हाइयाँ
एक शहर
श्मशान
आ गए तुम
बादल और किसान
आस बाकी हैं
सहस्त्र क्रान्ति
शहादत का जशन
बातों में वो बात कहां
परिंदे
एक अधुरी दास्तां
मुसाफिर
ख्वाहिश
मुझे फिर से

पत्थर की नारी

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By Shubhamq183

एक पत्थर की नारी,
कुछ सहमी,  कुछ बेचारी,
लाचार नहीं है वो, 
बस है वो खुद से हारीं,
समाज भ्रम के बंधन में,
जिसने उगली अबतक चिंगारी,
बेआवाज नहीं है वो,
बस है वो खुद से हारीं , 

वो पत्थर की नारी,
कुछ असहाय, कुछ गरिमाधारी,
कसक नहीं है वो,
बस है वो खुद से हारीं,
क्रुऱता के तांडव पर,
जिसने बरसी अबतक बूंदाबांदी,
खामोश नहीं है वो,
बस है वो पत्थर की नारी,
कुछ बेबस, कुछ खुद से हारीं।

                                    -शुभम

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